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प्रवशिष्ट साहित्य ]
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१०४३८. अम्बूद्वीप पट-- । पत्र सं० १ । प्रा० X । बेष्टन सं० २७४-१०६ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन मन्दिर इंगरपुर ।
विशेष-जंबुढीप का नक्शा है।
१०४३६. जिनगुरग विलास-नथमल । पत्र सं० ६१ । प्रा०७१x१०६ इञ्च । भाषाहिन्दी पद्य । विषय-स्तवन । र० काल सं० १८२२ पापान बुदी १० । ले० काल सं० १९२२ ग्राषाढ सदी २। पूर्ण । वेष्टन सं० २६:१५ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन सौगाणी मंदिर करौली।
विशेष-५२ पत्र से भक्तामर स्तोत्र हिन्दी में है। साह थी खुशालचन्द के पुत्र रतनचन्द ने प्रतिलिपि की थी।
१०४४०. प्रतिसं०२।पत्र सं०५६ मा० १२१x६ इञ्च । ले०काल सं० १८२३ काती सूदी १५ । पूर्ण । अष्टन सं०३१ । प्राप्ति स्थान-दि जैन पंचायती मन्दिर बयाना ।
विशेष--सवाई राम पाटनी ने भरतपुर में प्रतिलिपि की थी।
१०४४१. प्रतिसं०३ । पत्रसं० ६५ । आ० १३४५१ इञ्च । ले०काल सं० १८२३ भादवा बृदी १५ । पूर्ण : वेष्टन सं० २१ । प्राप्ति स्थान-दि जैन मंदिर दीवान चेतनदास पुरानी डीग ।
विशेष-नौनिधिराम ने प्रासाराम के पास प्रतिलिपि करवायी थी।
१०४४२. प्रतिसं०४। पत्र सं०८६ प्रा. ८३-६ इच। ले०कास सं. १८२२ भादवा सदी १२ । वैपन सं०१८ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन पंचायती मंदिर करीली।
विशेष-दोदराज ने करौली नगर में लिखवाया था।
१०४४३. जिनप्रतिमास्वरूप वर्णन छीतर काला। पत्रसं० ३८ । प्रा० १२१४७ इञ्च । भाषा-हिन्दी गद्म | विषय लक्षण । २० काल सं० १९२४ बैशाख सुदी ३ । ले०काल सं० १९४५ बैशाख सुदी १४ । पूर्ण । धेट्न सं० १४७ । प्राप्ति स्थान दि० जैन मंदिर अमिचन्दन स्वामी, बूदी।
विशेष- छीतर काला अज़मेर के रहने वाले थे । ग्राजीविका वश इन्दौर आये वहीं १९२५ में प्रथ को पूर्ण किया।
सहर वास अजमेर में तहां एक सरावग जान । नाम तास छीतर कहे गोत्रज कालो मान । कोई दिन वहां सुख सो रह्यो फेर कोई कारण पाय । नमत काम प्राजीविका सहर इन्दौर में प्राय ।
अन्तिम
नगर सहर इन्दौर में सुद्धि सहसि होय ।
तहां जिन मन्दिर के विषै पूरों कीनो सोय । सं० १९२३ मावन सुदी १५ को इन्दौर आये । और सं० १९२४ में अंथ रचना प्रारम्भ कर सं० १९२५ वैशाख सुदी ३ को समाप्त किया।
छोगालाल लहाडिया माकोदा वालों ने इन्दौर में प्रतिलिपि की थी।