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१११८ ]
११२. रस्नभयवीन
११४. त्रिकासार
१४६
सु
जीव रामय मन मांहि घरीनि कहि चारित्र सार अ० जिरणदास १४८ - ४८
सकलकीत १४८-४९
११५. आराधना
प्रतिबोध सार ११६. गुरणतीसी सीवना
११७. मन्त्रादकरण
(मिध्यादुकड) ११८. संताणु भावना
११६. मिकुमार गीत
(हमची नेमनाथ ) १२०. कलियुग चौप १२१. कर्मविपाक चौपई
० जिवास
१२५. चौबीस अतिशय
विनती
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वीरचन्द
१५०-५१
अंतिम पर विध प्रकार है-
रि श्री विद्यानंद जय श्री मनिष मुनिषद |
तस पठ महिना निलु गुर श्रीचन्द मन्द तेह कुल कमल दिव संपती जंयति जथि वीरचन्द | सुतां भरतां ए भावना पामीइ परमानन्द ॥ ८७॥ मुनि १५१ लावण्य समय
१५२
१५२-५३
१२२. गुरासी
१५३
१२३. ज्योतिष शास्त्र
१५४-५६
१२४. जम्बूस्वामी रास प्र० जिरपदास १५६-६६
वर विनती
१६६-६७
१६७
१२६ १२७. लघु बाल देखि शांतिवास १६७ विशेष – शांतिदास कल्याणकीति के शिष्य थे। अंतिम पञ्च निम्न प्रकार है
[ ग्रन्थ सूची- पंचम नाग
हिन्दी
३२ पद्य हिन्दी पद्य
०काल सं० १६१६ माह सुदी १४ हिन्दी १७ प०
१५८ पद्य है । हिन्दी ५५ पच
भरत नरेश्वर मावीया नाम्पु निजवर शीस जी । स्तवन करी हम जंपए हूँ किंकर तु ईस जी | ईस तुमने छांदीराज मनि द्यापीठ
हिन्दी
२० काल सं० १५६४७८०
हिन्दी ७३ प०
६४ प० संस्कृत
इम ही मन्दिर गया सुन्दर ज्ञान भवने व्यापीउ । थी का कीरति सोम मूरति चरण सेज निर्माण कर शांतिदास स्वामी प्रालि र पुत्र तह ती ।
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हिन्दी
१००६ पद्य हैं ।
२७ पद्य
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हिन्दी २६ पद्य
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