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________________ ११२६ ] [ ग्रन्थ सूची-पंचम भाग मकल गुता निधानं यंत्रमेनं विसुद्ध हृक्य कमल कोसं चामता वैध रूपं । जयति तिलक गुरो शूर राजस्य शिष्यं बदत सुख निधानं मोक्ष लक्ष्मी निवास ।। ३२ रावलादेव स्तोत्र-X1 हिन्दी । ८४ तक । थी रावलादेव कह जुहारा, स्वामी करु सेवक निज सारा । तविश्व चिन्तामणि एक देवा, करं सदा चौसठ इन्द्रसेवा ॥१॥ सेवा कर लक्षण नाग राजा, सारं सदा सेवक ना कोई काजा। पाटा तणा दुखना मूल तोड़, घटो घटी राकट ती विझोर्ड ॥२।। जे ताहरो नाव जगत जाणं, वलि वलि महिमा हे मवाएँ । जो बूडता पोहण माझ घ्यावे, ते कसरी सकट पारीजा ॥३॥ जे दूधस्यों को तरीपात बाजे, जे वितरा वितरी दोष दाम। जे प्रेत पीम प्रभु तुम, ध्यावं । जे जसरि संकट पारि नावे ।।४।। जे काल किंकाल ये सांच लीज, जे भूत वैताल पैमाल कीजै । जे डाकणी दुष्ट पडिलाज घ्यावं, ते ऊतरि संकट पार जावै ।।५।। जे नाग विर्ष विषझाल मूर्फ, तिण विरं झूमिया झाड़ सूकं । ते तिसौ डस्या प्रभुतुक ध्यावं, ते ऊरि संकट पार जावै ।।६।। जे द्रव्य होगा मुख दीन भास, . जे देह खीए। दिनरात सांस। जे अग्नि माम पडियाज घ्याचे, ते ऊतरि संकट पार जादै ।।७ । जे चक्षु पीड़ा मुख बंब फाई, जे रोग रुघ्या निज देह ताई । जे वेदनी क्रष्टनी कष्ट पडिपाज ध्यावे, से ऊतरि संकट पार जाने ।।८।। जे राज विग्रह पडियात थर्ट, ___ फिरी फिरी पार का देह कूट । ते लोह वंध्या प्रभु तुझ ध्यागै, ते ऊतरि संकट पार जाये
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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