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प्रागम, सिमान्त एवं वर्धा ]
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अन्तमें-ऐसे स्वामी उमास्वामी प्राचार्य कृत दशाध्यायी मूल सुत्र की सर्वार्थसिद्धि नामा संस्कृत टीका ताकी भाषावनिका ते संक्षेप मात्र अर्थ लैके दीवान बालमुकन्द के पुत्र गिरिवरसिंह वासी कुमेर के ने अपनी तुच्छ बुद्धि के अनुसार मल सूवनि को अर्थ जानिने के लिए यह बचनिका रची और स. १६३५ के ज्येष्ठ सुदी २ रविवार के दिन संपूर्ण कोनी।
५३०. तत्वार्थसूत्र भाषा --साहिबराम पाटनी। पत्रसं० ४० । आ० ११:४६ इञ्च । भाषा-हिन्दी (पञ्च) । विषय-सिद्धांत । र० काल में० १८१८ | ले०काल सं० १८१८ । पूर्ण | वेष्टन सं० ६६ । प्राप्तिस्थान दि जैन छोटा मंदिर बवाना।
विशेष—ग्रन्थ गुटका साइज में हैं। अन्य का प्रादि अन्त भाग निम्न प्रकार हैप्रादि भाग-सुमरण करि गुरु देव द्वादशांगवाणी प्रणाम ।
सुरगमुक्ति मग मेव, मुत्र शब्द भाषा कहाँ । पूर्वकृत मुनिराय, लिस्त्री विविध विधि वचनिका।
जिनहूँ अर्थ समुदाय लिस्लो अन्त न लख्यौ परे । टीका-शिवमग मिलवन कर्मगिर भंजन सर्वं तत्वज्ञ ।
बंदौ तिहगुण लब्धिको वीतराग सर्वज्ञ ।। अन्तिम---कवि परिचय --हैं प्रजाना जिन प्राश्रमी वर्ण वनिक व्यवहार ।
गोल पाटणी वंश गिरि है बूदो प्रागार ॥२१ ।। बमुदश शन पार दसरुवमु माघ विशति गुणग्राम ।
ग्रन्थरच्यौ गुरुजन कृपा सेवक साहिवराम ।। २२ ।। ऋषि खुशालचन्द ने बयाना में प्रतिलिपि की थी ।
५३१. तत्वार्थ सूत्र भाषा-छोटेलाल । पत्रसं० ७५ । भाषा-हिन्दी (पद्य) । विषयसिद्धान्त । र० कान सं० १९५८ । ले० काल सं० १९५६ । पूर्ण । वेष्टन सं० १०६ । प्राप्ति स्थान-दि जैन पंचायती मन्दिर, भरतपुर ।
विशेष—प्रोटेलाल जी अलीगढ़ वालों ने रचा था ! कवि का पूर्ण परिचय दिया हुआ है तथा गुटका साइज है ।
५३२. तत्वार्थ सूत्र भाषा-२० सदासुख कासलीवाल । पत्रसं० २० । प्रा० १२:४५३ इञ्च । भाषा - हिन्दी (गद्य) । विषय-सिद्धांत । २० काल सं० १९१० फाल्गुण बुदी १० । ले. काल सं० १९१० । पूर्ण । वेष्टन सं० ४२ । प्राप्ति स्थान–दि जैन मंदिर पाश्वनाथ टोडारायसिंह (टोंक) ।
५३३. प्रति सं०२। परसं० ८८ ले • काल-सं० १९७९ । पूर्ण । वेष्टन सं० २२ । प्राप्तिस्थान-दिजैन अग्रवाल मन्दिर उदयपुर ।
५३४, प्रति सं०३ । पत्र सं० १७७ । प्रा० १०१४५१ इञ्च ले०काल सं० १६५२ 1 अपूर्ण । वेष्ठन सं०-३६.५ । प्राप्ति स्थान—दि० जैन मंदिर दबलाना दी ।
___५३५. प्रति सं०४। पत्र सं० ३७ । प्रा० १०६४५३ इञ्च ! ले०काल सं १९१४ आसोज सुदी १४ । पूर्ण । वेष्ठन सं० ६।६४ । प्राप्ति स्थान-दि० जैन पार्श्वनाथ मन्दिर इन्दरगढ़, कोटा ।