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________________ गुटका संग्रह ] [ १००७ जो का अक्षर बोलत याचा, जह अबोल सहं मन न लगावा । बोल अबोल मध्य है सोई, जस वो है तस लखे न कोई ॥२॥ तुरक नरीकम जोन के हिन्दू येद पुरा : मन समझाया कारण कथी में कछ येक ज्ञान ||३|| ॐकार आदि में जाना, लिखक मेरे ताहि न माना । ॐकार जस है सोई, तसि लखि मेटना न होई ।।४।। कका किरण कवल में प्रावा, ससि विकास तहां संपुर नावा। परजैतहा कुसुम रस पाया जकह कहो नहि कासिम भावा ।।४।। मध्य भाग ममा मन स्यों काम है मन मनै सिधि होइ । मन ही मनस्यों कही कदीर मनस्यों मिल्या न कोई ॥३६॥1 अन्तिम भाग बावन प्रक्षर तेरि प्रानि एक अक्षर सक्या न जानि ।। " सबद कीरा कहै बूझो जाइ कहा मन रहे ।।४।। इति बावनि म्यान संपूर्ण । ६५३३. गुटका सं० १६ । पत्रसं० ३-६३ । प्रा०६४ इश्व । भाषा हिन्दी-संस्कृत । ले०काल सं० १८८८ | अपूर्ण । वेष्टन सं० २२८ । विशेष साधारण पूजा पाठ संग्रह एवं देवाब्रह्म कृत सास बहू का झगड़ा है। ६५३४. गुटका सं० १७ । पत्रसं० १४ । पा० ६४४ इञ्च । भाषा-हिन्दी-संस्कृत । लेकाल सं.४ । अपूरणं । वेष्टन सं० २२६ । विशेष—पूजा पाठ संग्रह है। ६५३५. गुटका सं०१८ । पत्रसं०५६ । आ०६४७ इञ्च । भाषा-संस्कृत । ले०काल सं. १८८७ । पूर्ण । वेष्टन सं० २३० । विशेष-मुख्यतः निम्न पाठों का संग्रह है... सप्तर्षि पूजा श्री भूषण संस्कृत अनन्त व्रत पूजा शुभचन्द्र मगधर बलय पूजा तत्वार्थ सूत्र उमास्वामि ६५३६. गुटका सं०१६ । पत्र सं० ६६ । प्रा० ११४५६च । भाषा-संस्कृत । ले०काल x1 अपुर्ण । वेष्टन सं०२३१ । विशेष-नित्य नैमित्तिक पूजायों एवं पाठों का संग्रह है।
SR No.090396
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1446
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size30 MB
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