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________________ ७४४ ] [ गुटका संग्रह अपभ्रश १. पुष्पाञ्जलिजयमाल २. लघुकल्याणपाठ ३, तत्वसार xx हिन्दी २४-२६ देवसेन प्राकृत ४. पाराधनासार ८३-१०० ५. द्वादशानुप्रेक्षा लक्ष्मीसेन १००-१११ ६. पार्श्वनाथस्तोत्र पद्मनन्दि संस्कृत १११-११२ ७. टूव्यसंग्रह प्रा. नेमिचन्द प्राकृत १४४-१५१ ५६३८, गुटका सं०४। पत्र सं० १८६ । प्रा० X ३० । भाषा-हिन्दी । ले. काल सं० १८४२ प्राषाढ सुदी १५ विशेष-निम्न पाठों का संग्रह है। हिन्दी १. पार्श्वपुराण भूधरदास १-१०२ २. एकसोगुनहरीव वन " १८४२ १ ०४ ३. हनुमन्त चौपाई व रायमल " १८२२ प्राषाउ सुदी ३ , ५६३६. गुटका सं०५ । पत्र सं० १४० । मा० ७३४४ इ० । भाषा-संस्कृत । विशेण-पूजा पाठ संग्रह है। YE४०.गटकासं०६। पत्र सं०२१३ । मा०१४५३० । भाषा-संस्कृत । ले० कालx। वियोष- सामान्य पाठों का संग्रह है। ५०४१. गुटका सं०७। पत्र सं० २२० 1 प्रा. ६४७३ इ० | भाषा-हिन्दी। ले० काल ४। पूर्ण। वियोष-५० देवीचन्दकृत हितोपदेश (संस्कृत) का हिन्दी भाषामें अर्थ दिया हुया है । भाषा गद्य और पद्य दोनों में है । देवीचन्द ने अपना कोई परिचय नहीं लिखा है। जयपुर में प्रतिलिपि की गई थी । भाषा साधारण है -१ अब तेरी सेवा में रहि हो । असे कहि गंगदत्त कुमा महि ते नीकरो। . दोहा-दुटो काल के गाल में अब कही काल न पाय | मो नर अरहट मालतें नमो जनम तन पाय ।। वार्ता-सांप की दाढ मैं ते छूटौ अरु कही नयो जनम पायो । पूर्व में ते बाहरि प्राय यो कही वहाँ सांप कितनेक देर तो वार देखौ । न पायो जब मातुर भयौ । तब यो कही में कहा कीयो । जदपि कुवा के मेंडक सब खायो जब लग गंगादत्त की न खायो तब लग रख कह खायो नहीं ।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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