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________________ + [ ६६५ गुटका-संग्रह ] धोकिरसन पचन ऐस कहे ऊधव तुम सुनि ले । नन्द जसोदा भादि दे बन जाइ सुख दे॥२॥ मज वासी बल्लम सदा मेरे जीउनि प्रान । ताने नीमष न बीसरू मोहे नन्दराय की प्रान ।। अन्तिम यह लीला बजवास की गोपी किरसन सनेह । जन मोहन जो गाव ही ते नर पाउ देह ।। १२२ ।। जो गाव सोष सुर गमन तुम वचन सहेत । रसिक राय पूरन कीया मन वांछित फल देत ।। १२३ ॥ नोट-मामे नाग लीला का पाठ भी दिया हुवा है । ५६७२. गुटका सं० २६० पत्र सं० ५२ । भा० ६४५ ३० । अपूर्ण । विशेष-मुख्य निम्न पाठों का संग्रह है। १. सोलह कारणकथा संस्कृत रत्नपाल मुनि ललितकीति २. दशलक्षणीकथा १३-१७ १७-१९ ३. रत्नत्रयनतकथा ४. पुष्पावलिव्रतकथा ५. प्रक्षयदशमीकथा ६. मनन्त चतुर्दशीव्रतकथा ७. वेद्यमनोत्सन १६-२३ २३-२६ नयनसुख हिन्दी पद्य पूर्ण ३१-५२ विशेष- लाखेरी ग्राम में दीवान श्री बुधसिंहजी के राज्य में मुमि मेघविमन ने प्रतिलिपि की थी। गुटका काफी जीर्थ है । पत्र मूहों के खाये हुए है । लेखनकाल स्पष्ट नहीं है। ४६७३. गुटका सं० २६१ । पत्र सं० ११७ । भाषा-हिन्दी संस्कृत | विषय -संग्रह । विशेष पूजा एवं स्तोत्र संग्रह है । संस्कृत में समयसार कल्पद्र मपूजा भी है। ५६७४, गुटका सं० २९२ 1 पत्र सं०४८ । १. ज्योतिषशास्त्र संस्कृत २. फुटकर दोहे ३१ दोहा है ३६-३७
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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