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गुरका-संग्रह
१. पश्चालिका
त्रिभुवनचन्द
। ६७३६ हिन्दी ले. काल १८२६ १५-२२
२३-२३
३. दोहाशतक रूपचन्द
२५-३८ ४. स्फुटदोहे
५५१५. गुटका सं०१३३ । रब सं. १२१ । प्रा. ५३४४ इंच । भाषा-संस्कृत हिन्दी।
विशेष-छहढाला ( यानतराय ), पचमङ्गल ( रूपचन्द), पूजा एवं सत्यार्थ सूत्र, भक्तामरस्तोत्र प्रादि . बा संग्रह है।
५५१६. गुटका सं० १३४ 1 पत्र सं० ४१ । प्रा० ५३४४ इंच । भाषा-संस्कृत । विशेष--शांतिनाथस्तोव, स्कन्दपुराण, भगवद्गीता के कुछ स्थत । ले. काल सं० १८६१ माघ सुदी ११ 1. ४५१७. गुटका सं० ६३५ । पत्र सं० १३-१३४ । मा० ३६४४ इच । भाषा-संस्कृत हिन्दी । अपूर्ण: विशेष-पंचमङ्गल, तत्वार्यसूत्र, प्रादि सामान्य पाठों का संग्रह है।
५५.१८. गुटका सं० १३६ । पत्र सं० ४-१०८ । मा २४२ इन्च : भाषा-संस्कृत । विशेष-भक्तामरस्तोत्र, तत्वार्थसूत्र, अष्टक आदि हैं ।
५५१६. गुटका सं० १३७ । पत्र सं० १६ । ग्रा० ६x४ । भाषा-हिन्दी । अपूर्ण । १. मोरपिच्छधारी (कृष्ण) के कत्रित धर्मदास, कपोत, विचित्र देव हिन्दो ३ कवित्त हैं। २ वाजिदजी के अडिल
वाजिद
, वाजिद के करितों के अंग हैं। जिनमें ९० पद्य हैं। इनमें से विरह के अंग के ३ छन्द नीचे प्रस्तुत. किये जाते हैं।
वाजीद विपति वेहद कहो कहां तुझ सों । सर कमान की प्रीत करी पीव मुझ सौं । पहले प्रपनी पोर तीर को तान ही, परि हां पीछे डारत दूरि जगत सब जानई ॥२॥ बिन बालम वेहाल रह्यो क्यों जीव रे । जरद हरब सी भई बिना तोहि पीयरे । सधिर मांस के सास है क चाम है । परि हां जब जीव लामा पोक और क्यों देखना ।।२५।। कहिये सुनिये राम और न गित रे | हरि ठाकुर को ध्यान स धरिये नित रे ।
जीव विलम्ब्यां पीव दुहाई राम की । परि हां सुख संपति वाजिद कहो क्यों काम को २६॥
५५२०. गुटका सं० १३६ । पव सं०६। प्रा० ७४४३ इंच। भाषा-हिन्दी । विषय-कथा । पूर्व एव शुद्ध । दशा-सामान्य ।
विशेष—मुक्तावली व्रतकथा भाषा ।