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________________ रूपचन्द गुटका-सRE ] ५४५४. गुटका सं०७३ । पत्र सं १५२ । मा० ७४६ च । अपूर्मा | दशा-जीर्ण शीर्ण । १. रागु पासावरी अपभ्रंश प्रारम्भ विसउणाभेण कुरुजंगले तहि यरु वाउ जीउ राजे । धरणकणणायर पूरियज करणयप्वहु घणउ जीउ राजे ।। १ ।। विशेष-गीत अपूर्ण है तथा अस्पष्ट है | २. पादड़ी ( कौमुदोमध्यात् ) अपभ्रंश सहगपाल २-७ प्रारम्भ हाह धम्मभुउ हिंडिउ संसारि प्रसारइ । कोइपए सुरणउ, गुणदिन्छु संख विरगु वारइ ॥ छ ।। अन्तिम पत्ता पुरणुमंति कहइ सिवाय सुरिण, साहरणमेयह किज्जइ । परिहरि विगेटु सिरि ससियत संधि सुमई साहिज्जइ ॥ ६ ॥ ॥ इति सहपालकृते कौमुदीमध्यात पद्धड़ी छन्द लिखितं ।। ३. कल्यारणकविधि मुनि विनयचन्द अपनश प्रारम्भ सिद्धि सुहकरसिद्धियाहु पराविधि तिज पयासरण केवलसिद्धिहि कारणगुणमिहउँ । सयलवि जिण कल्लारण नियमल सिद्धि सुहंकरसिद्धियह ।।१॥ अन्तिम एमभत्तु एक्कु जि कमाणउ विहिणिविपडि प्रहाइ गणरणध । अहवासय लहखवरणविहि, विरणमचंदि सुणि कहिउ समत्यह ।। सिद्धि सुहकर सिद्धियह ॥ २५ ।। ॥ इति विनमचन्द कृतं कल्यारणविधिः समासा ।। ४. चूनड़ी (विरामं दिवि पंच गुरु) यति विनयचन्द अपभ्रका
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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