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________________ सिद्धान्त एवं चर्चा ] १६ उत्तराध्ययनभाचाटोका विषय- भाग २० काल X १ ० काल X विशेष-ग्रन्थ का प्रारम्भ निम्न प्रकार है। विषय - सिद्धान्त र काल X | ले० काल १००३ । २२४४ प्राप्ति स्थान उबीमे परमधार ।। १ ।। परम दयाल दया करू, उवीसे जिवर नमु धरम ग्यान दाता सुगुरु, अनिस ध्यान धरेस । वाणी वर देसी सरस विश्वन द्वार विघनेम ।। २ ।। उत्तराध्ययम च दs मित्र र अधिकार लप ग्रफल गुड वरणा, कहूं बात मति अनुसार ।। ३ ।। स्राधिकार अनुप । निश विकथा परिहरी सुरण ज्यों मालस मूद्र ।। ४ ।। साकेत नगरी का दर्गान है। कई डालें दी हुई हैं। २०. उदयसत्ता बंधप्रकृति वर्णन आमा पूरा काज । [ ३ १०x४ इ० हिन्दी । भण्डार । २१ कर्ममन्यसत्तरी १० काल X ७ काल सं १७८६ माह बुदी १० पूर्ण । विशेष कर्म सिद्धान्त पर विवेचन किया गया है। | पत्र ०५ ११५३ इंच । मा० संस्कृत । अपूर्ण ० सं० १८४० प्राप्ति स्थान ट भण्डार । | पत्र सं० २८ । मा० ६x४ इंच । भा० प्राकृत विषय सिद्धान्त । ० सं० १२२ । प्राप्तिस्थान में भण्डार । २२. कर्मप्रकृति - नेमिचन्द्राचार्य | पत्र सं० १२ । प्रा० १०३४४३ इंच | भा० प्राकृत । विषयसिद्धान्त होX | ले० काल सं० १६०१ मंगसिर सुंदी १० । पूर्ण । वे० सं० २६७ । प्रासिस्थान र भण्डार । विशेष-लू के पठनार्थं नागपुर में प्रतिनिधि की गई थी। संस्कृत में संक्षिप्त टीका श्री हुई है । प्रशस्ति संवत् १६८१ वर मिति भागसिर दि १० शुभ दिने श्रीमन्नागपुर पूर्णीकृता पांडे बाबू पठनायं लिखितं सुरजन मूर्ति सा० भदारोन प्रदत्ता । २३ प्रति सं० २ । पत्र सं० १७ । ले० काल २ ० ० ८५ प्राप्ति स्थान का भण्डार विशेष-संस्कृत में सामान्य टीका दी हुई है । २४. प्रति सं० ३ । पत्र सं० १७ । ले० काल x ० १४० प्राप्ति स्थान अ भण्डार । विशेष-संस्कृत में सामान्य टीका दी हुई है।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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