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अन्तिम भाग ---
१३. सोलराग
सरमुर्ति तनइ पसाइ, ज्ञान मनवांछित पूर सारद लागी पाइ, जेमि दुख दालिद्र भरइ ॥ गुरु निरग्रन्थ प्रणम्य कर जिन चउवीसो मन धरउ । गुनकीर्ति इम उश्वर, सुभ बसाइ रु देला तर ३॥१॥
१. प्रभावती कल्य
२. नाड़ी परीक्षा
नाभिराय कुलचन्द, नंद मरुदेवि जान |
का धनुष शत पक्ष वृषभान् ॥ हेम वर्ष कहि कामु श्रायु लक्ष्य जु चौरासी । पूर गनती एह, जन्म अयोध्या वासी ॥
भरहि राजु तु सौपि कर, अस्टापद सीधउ ता । गृनकीति इभ उच्चरs, सुभवित लोक वन्द सदा ||१॥
॥ इति श्री तितीर्थंकर छपैया सम्पूर्ण ॥
गुरको ति
हिन्दी
रचना सं० १७१३
गंख्या २२६ ॥
श्र० १०७॥ दशा - जी |
५१. गुटका सं० ३ विशेष- ३४ पृष्ठ तक आयुर्वेद के अच्छे नुसते हैं ।
श्रीमूलसंघ विख्यातगछ सरसुतिय बखानेउ | तिहि महि जिन बडवीस, ऐह सिक्षा मन जानउ ।। पराय छह प्रसाद, उत्तंग मूलचन्द्र प्रभुजानी । साहिजिहां पतिसाहि, राजु दिलीपति श्रानी | सतरहसहरु सतोत्तरा, वदि प्रसाद चउदसि करना । गुनकीर्ति इम उचर, सु सफल संघ जिनवर सरना ||
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हिन्दी
संस्कृत
करीब ७२ रोगों को चिकित्सा का विस्तृत वर्णन है ।
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[ गुटका-संग्रह
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कई रोगों का एक नुसखा है।