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________________ ६०२ ] अन्तिम भाग --- १३. सोलराग सरमुर्ति तनइ पसाइ, ज्ञान मनवांछित पूर सारद लागी पाइ, जेमि दुख दालिद्र भरइ ॥ गुरु निरग्रन्थ प्रणम्य कर जिन चउवीसो मन धरउ । गुनकीर्ति इम उश्वर, सुभ बसाइ रु देला तर ३॥१॥ १. प्रभावती कल्य २. नाड़ी परीक्षा नाभिराय कुलचन्द, नंद मरुदेवि जान | का धनुष शत पक्ष वृषभान् ॥ हेम वर्ष कहि कामु श्रायु लक्ष्य जु चौरासी । पूर गनती एह, जन्म अयोध्या वासी ॥ भरहि राजु तु सौपि कर, अस्टापद सीधउ ता । गृनकीति इभ उच्चरs, सुभवित लोक वन्द सदा ||१॥ ॥ इति श्री तितीर्थंकर छपैया सम्पूर्ण ॥ गुरको ति हिन्दी रचना सं० १७१३ गंख्या २२६ ॥ श्र० १०७॥ दशा - जी | ५१. गुटका सं० ३ विशेष- ३४ पृष्ठ तक आयुर्वेद के अच्छे नुसते हैं । श्रीमूलसंघ विख्यातगछ सरसुतिय बखानेउ | तिहि महि जिन बडवीस, ऐह सिक्षा मन जानउ ।। पराय छह प्रसाद, उत्तंग मूलचन्द्र प्रभुजानी । साहिजिहां पतिसाहि, राजु दिलीपति श्रानी | सतरहसहरु सतोत्तरा, वदि प्रसाद चउदसि करना । गुनकीर्ति इम उचर, सु सफल संघ जिनवर सरना || X हिन्दी संस्कृत करीब ७२ रोगों को चिकित्सा का विस्तृत वर्णन है । X [ गुटका-संग्रह २४० कई रोगों का एक नुसखा है।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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