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गुटका-संघह ]
किरपा फुरिण मोहन जीवणयं, प्रफरपुर मारोठ यानकयं । सरवोपम लायक थान छणे, गुरु देख सु भामम भक्ति यजै ।।२।। तीर्थकर ईस भक्ति धरै, जिन पूज पुरंदर जम करें । चतुसंध सुभार धुरंधरयं, जिन पति ऐक्यालय कारक्यं ।।३।। व्रत द्वादस पालस सुद्ध खरा, सतरे पुनि नेम धरै सुथरा । बहु दान चतुर्विध देय सदा, गुरु शास्त्र सुदेव पुजे सुखदा ।।४।। धर्म प्रश्न जु श्रेणिक भूप जिसा, सद्मश्रेयांस दानपति जु तिसा | निज स ज व्योम दिवाकरयं, गुरण सौख्य कलानिधि बोधमयं ।।५।। सु इत्यादिक वोयम योगि बहु, लिखियो जु कहां लग बोय सहूं । दयुड़ा गोठि जु थावग पंच लस, शुद्धि वृद्धि समृद्धि प्रानन्द वस । ६।। तिह योगि लिखे धम वृद्धि सदा, लाहिमो सुख संपति भोग मुदा ।
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इह थानक नानन्द देय जपें, उत चाहत खेम जिनेन्द्र क । अपरं च जु कागद प्राइ इतै, समाचार वाच्या परसंन तिनै ।।८।। सह वात जु लाय प्रमकर, प्रम देव गुरु पसि भक्ति भर । मर्याद सुधारक लायक हो, कल्पद्र म काम सुदायक हो ।।६।। पदार्थत विनवत दातृ गहो, गुणशील दयानम पालक हो । इत है व्यवहार सदा तुम को, उपरांति तुमै नहि औरन को ॥१०॥ लिखियो लघु को विधमान यह, सुख पत्र जु बाहुइता लिखि है। वसू वाण बसू पुनि चन्द्र कियं, बदि मास असात चतुर्दिशियं ॥११॥ इह श्रोटक छंद सुचाल मही, लिखवी पतरी हित रीति वही।
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तुम भेजि हूं बैंक संकर नै, समचार कह्या मुख ते सुइने । इनके समाचार इतै मुख ते, करज्यो परवान सवै सुखते ।।१३।।
॥ इति पत्रिक सहर म्हारोठ की पंचायती नु॥ ३०५, शृङ्गार रस के फुदकर छन्द
हिन्दी
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