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[ पूजा प्रतिष्ठा एवं विधान साहित्य विशेष-संवत् १५३३ में इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि कराई जाकर भट्टारक श्री रत्नकीत्ति को भेंट की गई थी। जयमाला प्राकृत में है ।
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४४०१. अष्टाह्निका पूजा कथा - सुरेन्द्रकीर्त्ति । पत्र मं० ६ । मा० १०३४५ इ | भाषा-संस्कृत | विषय प्राह्निका पर्व की पूजा तथा कथा । २० काल सं० १०५१ | ले० काल सं० २०६८ भाषाद सुबो १० । ०
सं० ५६६ । अ भण्डार ।
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विशेष – पं० सुगालचन्द ने जोधराज पाटोदी के बनवाये हुए मन्दिर में अपने हाथ से प्रतिनिधि की थी ।
भट्टारकोऽज्जगदादिति श्रीमूलस वरशारदायाः ।
पराज देवेंद्र
सनभूततश्च ॥ १३७॥
तत्पट्टपूर्वाचल भानुकक्षः श्रीकुंदकुंदान्बयलब्धमुख्यः । महेन्द्रकीतिः प्रवभूतपट्टे क्षेमेन्द्रकोसिः गुरुरस्थमेऽभूत ॥१३८॥
योऽभूद्रकीतिः भुवि सगुणभरश्वारुचारित्रधारी । श्रीमद्भट्टारकेंद्रों विलसदवगमो भव्य संधै प्रबंधः ।
तस्य श्रीकार शिष्यागमजलधिपटुः श्री सुरेन्द्रकीति |
रैनां पुण्यांचकार प्रलघुमतिदिदां बोधतापार्जशब्दः ॥१३२॥
मितिमा शुक्लपक्षेदणम्यां तिथौ संवत १८७८ का सवाई जयपुर के श्रीऋषभदेव चैत्यालये निवास पं० कल्याणदासस्य शिष्य खुन्यालचन्द्र र स्वहस्तेन लिपीकृतं जोधराज पाटोदी कृत चैत्यालये || शुभं भूयात् ॥ इसके अतिरिक्त यह भी लिखा है
मिति माह सुदी ३ सं० १८८८ मुनिराज दोय आया | बढा वृषभसेनजी लघु बाहुबलि मालपुरासुं प्रकाशमें आया । सांगानेर सुं भट्टारकजी की नसियां में दिन घड़ी च्यार चढ्यां जयपुर में दिन सवा पहर पाछे मंदिरां दर्शन संगही का पाटोवी उगहर ( वगैरह ) मंदिर १० कीमा पाछे मोहनवाड़ी नंदलाल जी की कोतिस्तंभ की नसियां संगहो विरधोदजी भापको हवेली में रात्रि १ रह्या भोजनकरि साहीबाड राविवास कीयो संमेदगिरि यात्रापधारया पराकुत बोले श्री ऋषभदेवजी सहाय |
इसी भण्डार में एक प्रति सं० १८६० की ० सं० ५४२ ) और है।
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४४०२. अष्ठाह्निकापूजा - धानतराय । पत्र सं० ३०८४६३ 1 भाषा - हिन्दी विषयपूजा । र० काल X | ले० काल X। पूर्ण । ० सं० ७०३ का भण्डार ।
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विशेष-पत्रों का कुछ भाग जल गया है।