________________
स्तोत्र साहित्य ]
मामचंद -
भुजंगप्रयात्तछंद ----
मर्यादि
मौत्तिकदा मछंद -
मार्याछंद
जताचंदजाण भव्यज्जभाग भत्ताजईप्रारण कसा सुहागा ॥७६॥ धम्मदुकुंदेशा सद्धम्म देश गम्मोत्थुकारेण भतिज्यभारेण ॥ अणि रोमी तित्येण दासेण ब्रहेण संकुज्जभ
॥ ८ ॥
द्वात्रिशत्यत्र कमलबंधः ॥
कोहो लोहोबत्तो भतो अजण सासणे लीरो ।
मा अमोहवि खीयो मारत्थी कंकरणो ऐसी ॥६॥
सुवित्त वितितो विभामो जईसो सुसौलो सुलीलो मुसोहो विसो ।
सुम्मसुम सुमोमो विराम्रो विभाओ विविट्टो विमोसो ॥१०॥
सम्म सरगरगाणं सचारितं त बसु राम्णो ।
चरइ चरावर धम्मो चंदो अविष्णु विक्खाश्रो ।।११॥
तिलंग हिमाचल मालव अंग वरवर केरल कण्ण्ड बंग । तिलात कलिंग कुरंगडहाल कराड गुज्जर इंद्र तमाल ।।१२।। पोट अति किरात प्रकीर सुत्नुक्क तुरुक्क बराड सुवीर । मरुस्थल दख पुरवदेस सुरणागवचाल सुकुंभ लसेस ॥११३॥ चऊड गऊड सुकंकणलाट, सुबेट सुभोट सुदविड राट । सुदेश विदेसहं श्राचर राय, विवेक विचक्रण पूजइ पान || १४ | ३ सुचक्कल पीपनोहरि पारि, राज्झण रोडर पाड़ विधारि । सुचिग्भम प्रति महाउ विभाउ, सुगावर गोउ मोहसाउ ।।१५।। सुउज्जल मुत्ति महीर पवाल, सुपूरउ शिम्मल रंगिहि बाल | ears विउरि धम्मविचंद बचाउ अक्खहि बारु सुभेद ||१६|
जड़ जगदिसिवर सहिश्रो, सम्मदिट्टि साथ श्राइ परि भरिउ । जिधम्मभवखंभो विस श्रंख करो जो जभइ ॥११०॥
[ ३६७