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________________ ३८४ ] भण्डार । छ भण्डार । अन्तिम अणु दिगु वित्त प्रविचलं । कहिय समुच्च एण ते कविणा लिज्जइ इमरपुत्र भव फलं ॥ इति श्री समन्तभद्र कृतं कल्याणक समाप्ता ॥ ३८१६. कल्याणमन्दिरस्तोत्र - कुमुदचन्द्राचार्य । पत्र सं० ५ ० १०२४ इ ंच | भाषा-संस्कृत । विषय- पार्श्वनाथ स्तवन । र० काल X | ले० काल X। पूर्ण । ० सं० ३५१ । का भण्डार | विशेष – इसी भण्डार में ३ प्रतियां ( वे० सं० ३८४ १२३, १२६२ ) और हैं । ३०. प्रति सं० २ । पत्र सं० १३ | ले० काल X। वे० सं० २६ । ल भण्डार | विशेष – इसी भण्डार में ३ प्रतियां और हैं ( ० ० ३०, २६४, २८१ ) । ३८२१. प्रति सं० २ । पत्र सं० १६ | ले० काल सं० १८१७ माघ सुदी १ | वे० सं० ६२ । च शिष्य थे । करि कल्लापुज्ज जिरगाह हो, [ स्तोत्र साहित्य गांका की है। ३८२२ प्रति सं० ४ । पत्र संले काल सं० १६० १५० सं० २५६ ॥ विशेष- पत्र नहीं है। इसी भण्डार में एक प्रति ( ० सं० १३४ ) और है। ३८२३, प्रति सं० ५ । पत्र मं० ५ | ले० काल सं० २७१४ माह बुदी ३ । ० सं ७ | झ भण्डार | विशेष – साह जोधराज गोदीकाने श्रानंदराम से सांगानेर में प्रतिलिपि करवायी थी। यह पुस्तक जोधराज ३२४. प्रति सं० ६ १ पत्र सं० १८ | ले० काल सं० १७६६ | वे० सं० ७० । न भण्डार । विशेष प्रति हर्षकोति कृत संस्कृत टीका सहित है। हर्षकीत नागपुरीय समागच्छ प्रधान चन्द्रकीत्ति के ३८२५ प्रति सं० ७ | पत्र सं ० है । ले० काल सं० १७४९ | वै० सं० १६६६ | ट भण्डार | विशेष – प्रति कल्याणमञ्जरी नाम विनयसागर कृत संस्कृत टीका सहित है । अन्तिम प्रशस्ति निम्न प्रकार इति सकलकुमकुम खंड खंड चंद्ररश्मिश्री कुमुदचन्द्रसूरिविरचित श्रीकल्यागामन्दिरस्तोत्रस्य कल्याशामञ्जरी टीका पूर्ण । दयाराम ऋषि ने स्वात्मज्ञान हेतु प्रतिलिपि की थी। ३८२६. प्रति सं० प० ४ ० काल सं० १८६६ | वे० सं० २०६५ । द भण्डार । I विशेष --- छोटेलाल ठोलिया मारोठ वाले ने प्रतिलिपि की थी । ५
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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