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[ फागुरासा एवं बेलि साहित्य तस पट्टि सूरीवरभलु जयकत्ति जयकार । जे भवियरण भवि साभली ते पामी भवपार ॥६॥ रूपकुमर रलीया मरगू बंकनूल बोजु नाम । तेह रास रच्यु रुवा अपकीत्ति मुखधाम ।।७।। नीम भाद निर्मल हुई पुरुवचने निर्धार । सभिललां मंद मलि ये भरिश नरतिनार । या सायर नन्न महीचंद सूर जिनभास । जयकोसि कहिता रहु बंकलनु रास ||६||
इति बंकचूलरास समाप्तः ।
संवत् १६६३ वर्षे फागुण बुदी १३ पिपलाइ ग्रामे लक्षतं भट्टारक श्री जयकीति उपाध्याय श्री बीरचंद ब्रह्म श्री जसवंत वाइ कपूरा या बीच रास ब्रह्म श्री जसवंत लक्षतं ।
३६६५. भविष्यदत्तरास-प्रशारायमल्ल । पत्र सं० ३९ । प्रा० १२४८ इन्च । माषा-हिन्दी । विषयरासा-भविष्यदत्त की कया है । र.. काल सं० १६३३ नातिक सुदी १४ । ले. काल | पूर्ण । ३० सं १८६ | अ भण्डार।
३६६६. प्रति सं०२पत्र सं०६६ | ले. काल सं० १७८४ 1 वे० सं० १९३० । भण्डार । विदोष-मामेर में श्री मल्लिनाथ चैत्यालय में श्री भट्टारक देवेन्द्रकीत्ति के शिष्य दयाराम मौनी ने प्रतिलिपि
की थी।
३६१७. प्रति सं०३। पत्र सं०६. | ले० काल सं० १.१ । वे० सं०५.६६
भण्डार ।
विशेष-पं० छाजूराम ने जयपुर में प्रतिलिपि की थी।
इनके अतिरिक्त ख भण्डार में १ प्रति ( वे० सं० १३२ ) छ भण्डार में १ प्रति ( ० सं० १६१ ) तथा म भण्डार में १ प्रति ( ० मा १३५ ) और है।
३६१८. रुकमिणी विवाहदेहि ( कृष्णरुकमिणोवेलि )-पृश्वीराज राठौड । पत्र स० ५१ से १२१ । प्रा० ६x६ इंच । भाषा-हिन्दी । विषय-वेलि । र० काल सं० १६३८ । ले. काल सं. १७१९ चैत्र बुदी ५ । अपूर्ण । वे० सं० १६४ १ ख भण्डार ।
विशेष-देवगिरी में महात्मा जगन्नाथ ने प्रतिलिपि की थी। ६३० पद्य है। हिन्दी गद्य में टोका भी दी
हुई है। ११२ पृष्ठ से आगे अन्य पाठ हैं