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________________ ३६४ । [ फागुरासा एवं बेलि साहित्य तस पट्टि सूरीवरभलु जयकत्ति जयकार । जे भवियरण भवि साभली ते पामी भवपार ॥६॥ रूपकुमर रलीया मरगू बंकनूल बोजु नाम । तेह रास रच्यु रुवा अपकीत्ति मुखधाम ।।७।। नीम भाद निर्मल हुई पुरुवचने निर्धार । सभिललां मंद मलि ये भरिश नरतिनार । या सायर नन्न महीचंद सूर जिनभास । जयकोसि कहिता रहु बंकलनु रास ||६|| इति बंकचूलरास समाप्तः । संवत् १६६३ वर्षे फागुण बुदी १३ पिपलाइ ग्रामे लक्षतं भट्टारक श्री जयकीति उपाध्याय श्री बीरचंद ब्रह्म श्री जसवंत वाइ कपूरा या बीच रास ब्रह्म श्री जसवंत लक्षतं । ३६६५. भविष्यदत्तरास-प्रशारायमल्ल । पत्र सं० ३९ । प्रा० १२४८ इन्च । माषा-हिन्दी । विषयरासा-भविष्यदत्त की कया है । र.. काल सं० १६३३ नातिक सुदी १४ । ले. काल | पूर्ण । ३० सं १८६ | अ भण्डार। ३६६६. प्रति सं०२पत्र सं०६६ | ले. काल सं० १७८४ 1 वे० सं० १९३० । भण्डार । विदोष-मामेर में श्री मल्लिनाथ चैत्यालय में श्री भट्टारक देवेन्द्रकीत्ति के शिष्य दयाराम मौनी ने प्रतिलिपि की थी। ३६१७. प्रति सं०३। पत्र सं०६. | ले० काल सं० १.१ । वे० सं०५.६६ भण्डार । विशेष-पं० छाजूराम ने जयपुर में प्रतिलिपि की थी। इनके अतिरिक्त ख भण्डार में १ प्रति ( वे० सं० १३२ ) छ भण्डार में १ प्रति ( ० सं० १६१ ) तथा म भण्डार में १ प्रति ( ० मा १३५ ) और है। ३६१८. रुकमिणी विवाहदेहि ( कृष्णरुकमिणोवेलि )-पृश्वीराज राठौड । पत्र स० ५१ से १२१ । प्रा० ६x६ इंच । भाषा-हिन्दी । विषय-वेलि । र० काल सं० १६३८ । ले. काल सं. १७१९ चैत्र बुदी ५ । अपूर्ण । वे० सं० १६४ १ ख भण्डार । विशेष-देवगिरी में महात्मा जगन्नाथ ने प्रतिलिपि की थी। ६३० पद्य है। हिन्दी गद्य में टोका भी दी हुई है। ११२ पृष्ठ से आगे अन्य पाठ हैं
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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