________________
फागु रासा एवं वेलि साहित्य ]
[ ३६१
३६८२. चन्दनबालारास ....... पत्र सं० २ । प्रा० ६३४३ इंच | भाषा - हिन्दी | विषय - सती चन्दनबाला की कथा है। र० काल X | ने० काल X पूर्ण 1 ० सं० २१६५ । श्र भण्डार |
३६८४. चन्द्रले रास - मतिकुशल पत्र सं० २६ | आ० १०५४ इंच | भाषा - हिन्दी | विषयराम्रा (चन्द्रलेखा की कथा है) र० काल सं० १७२८ मायोज बुढी १० । ले० काल सं० १८२६ भासोज सुदी । पूर्ण । ० सं० २१७१ । श्र भण्डार
विशेष - श्रकबराबाद में प्रतिलिपि की गयी थी । दशा जीर्ण शीर्ण तथा लिपि विकृत एवं प्रशुद्ध है । प्रारम्भिक २ प पत्र फटा हुआ होने के कारण नहीं लिखे गये हैं ।
अन्तिम
सामाइक सुधा करो, त्रिकरण सुद्ध निकाल । सत्रु मित्र समतारिण, तिमतुटै जग जाल ॥ ३॥ मरुदेवि भरथादि मुनि, करी समाइक सार ! केवल कमला ति वरी, पाम्यो भवनो पार ॥४॥ सामाइक मन सुद्ध करी, पामी द्वांस पकत्त । तिथ ऊपरिन्दु सांभलो, चंद्रलेहा चरित्र ॥५॥ वचन कला तेह बनिछे, सरसंघ रसाल । ती जागु सन्त पड़सी, सोभलतो स्याल ||६॥ संवत् सिद्धि कर मुनिससी जो वद भ्रातृ दसम विचार । श्री पीपास में प्रेम सुं, एह रच्यो अधिकारं ॥ १२ ॥ खरतर गणपति मुखकरूंजी, श्री जिन सूरिद वडवती जिम साखाखमनीजी, जो छू रजनीस दिद ||१३||
सुसुरा श्री मुगुणकीरति गणोजी, वाचक पदवी धरंत | अंतवासी खिर गयो जी, मतिवल्लभ महंत ॥१४॥
प्रथमत सुसी प्रति प्रेम स्युंजी, मतिकुसल कई एम । सामाइक मन सुद्ध करो जी, जब वए भ्रह लेहा जेम || १५ || रतनवल्लभ गुरु सानिषम, ए कोयो प्रथम अभ्यास | खसय चौबोस गाहा श्र जी, उसालीस ढाल उल्हास ॥१६॥
सुसु भावस्य जी, गरुआतरण गुरण जेह | मन सुध जिनधर्म से करें जी, श्री भुवन पति हुवे तेह ॥ १७॥ सर्व गाया ६२४ । इति चन्द्रहारास संपूर्ण ॥