________________
* प्रकाशकीय * अथ सूची के चतुर्थ भाग को पाठकों के हाथों में देते हुये मुझे प्रसन्नता होती है । पथ सूची का यह भाग अब तक प्रकाशित ग्रंथ सूचियों में सबसे बड़ा है और इसमें १० हजार से अधिक प्रयों का विवरण दिया हुअा है। इस भाग में जयपुर के १२ शास्त्र भंडारों के प्रथों की सूची दी गई है। इस प्रकार सूची के चतुर्थ भाग सहिन अब तक जयपुर के १७ तथा श्री महावीरजी का एक, इस तरह १८ भंडारों के अनुमानतः २ हजार अंधी का विवरण प्रकाशित किया जा चुका है।
नयों के संकलन को देखने से पता चलता है कि जयपुर प्रारम्भ से ही जैन साहित्य एवं संस्कृति का केन्द्र रहा है और दिगम्बर शास्त्र भंडारों की दृष्टि से सारे राजस्थान में इसका प्रथम स्थान है । जयपुर बड़े बड़े विद्वानों का जन्म स्थान भी रहा है. सभा इस ना होने वाले टोडरमल जी, जयचन्द जी, सदासुखजी जैसे महान विद्वानों ने सारे भारत के जैन समाज का साहित्यिक एवं धार्मिक दृष्टि से पथप्रदर्शन किया है | जयपुर के इन भंडारी में विभिन्न विद्वानों के हाथों से लिखी हुई पाण्डुलिपियां प्राप्त हुई है जो राष्ट्र गर्व समाज की अमूल्य निधियों में से हैं । जयपुर के पाटीदी के मन्दिर के शास्त्र भंडार में पं. टोडरमल जी द्वारा लिखे हुये गोम्मट्टसार जीवकांड की मूल पाण्डुलिपियां प्राम हुई है जिसका एक चित्र हमने इस भाग में दिया है। इसी तरह ब्राह्म रायमरुल, जोधराज गोदीका, खुशालचंद आदि अन्य विद्वानों के द्वारा लिखी हुई प्रतियां हैं।
इस ग्रंथ सूची के प्रकाशन से भारतीय साहित्य पर्व विशेषतः जैन साहित्य को कितना लाभ पहुँचेगा इसका सही अनुमान तो विद्वान ही कर सकेंगे किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इम भाग के प्रकाशन से संस्कृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी की सैकड़ों प्राचीन एवं अज्ञात रचनायें प्रकाश में आयी हैं । हिन्दी की अभी १३ वीं शताब्दी की एक रचना जिनदत्त चौपई जयपुर के पाटोदी के मन्दिर में उपलब्ध हुई है जिसको संभवतः हिन्दी भाषा की सर्वाधिक प्राचीन रचनाओं में स्थान मिल सकेगा तथा हिन्दी माहित्य के इतिहास में वह उल्लेखनीय रचना कहलायी जा सकेगी। इसके प्रकाशन की व्यवस्था शीघ्र ही की जा रही है । इससे पूर्व प्रद्युम्न चरित की रचना प्राप्त हुई थी जिसको सभी विद्वानों ने हिन्दी की अपूर्व रचना स्वीकार किया है।
___ उन सूची प्रकाशन के अतिरिक्त क्षेत्र के साहित्य शोध संस्थान की ओर से अब तक ग्रंथ सूची के तीन भाग, प्रशस्ति संग्रह, सर्वार्थसिद्धिसार, तामिल भापा का जैन साहित्य, Jainisru a key to true happiness, तथा प्रद्युम्नचरित पाठ ग्रंथों का प्रकाशन हो चुका है। सूची प्रकाशन के अतिरिक्त राजस्थान के विभिन्न नगर, कस्बे एवं गांवों में स्थित ७० से भी अधिक भंडारों की प्रध सूचियां बनायी जा