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सुभाषित एवं नीतिशास्त्र ]
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विशेष-विश्वसेन के शिष्य बलभद्र ने इसकी प्रतिलिपि की थी।
इसी भण्डार में एक प्रति ( ० सं० १०२१ ) तथा अ भण्डार में एक प्रति ( ० सं० ३४५ क ) और है।
३४६.३. रनकोष..."| पत्र सं० १४ । प्रा० ११४५ इञ्च । भाषा-हिन्दी । विषय-सुभाषित । र. काल ४ ले. काल XI पूर्ण । ० सं० ६२४ । क भण्डार |
विशेष-१०० प्रकार की विविध बातों का विवरण है जैसे ४ पुरुषार्थ, ६३ राजवंश, ७ अंगराग्य, राजाओं के गुरग, ४ प्रकार की वाय विता : माल, ६ एकार के दिनोद तथा ७२ प्रकार को कला
३४६४. राजनीतिशास्त्रभाषा-असुराम । पत्र सं०१८ | मा० ५४४ इन्ध | भाषा-हिन्दो पछ । विषय-राग्नीति | र० काल X 1 ले. काल X । पूर्ण । वै० सं० २८ । म भण्डार ।
विशेष-श्री यरोशायनमः अथ राजनीत जसुराम कृत लीखतं । दोहा
पछर अगम अपार गति कितह पार न पाय । सो मोकु दीजे सकती जे जे जे गराय॥
छगम---
वरनी उजवल वरन सरन जग प्रसरन सरनी । कर करूनो करन तरम सब तारन तरनी ।। शिर पर धरनी छत्र झरन सुख संपत भरनी । झरनी अमृत झरन हरन दुख दारिद हरनी॥ धरनी विसृल वपर धरन भब भय हरनी 1 सकल भय जग बंध प्रादि बरनी जसु जे जग धरनी ।। मात बे.. जे जग धरनी मात जे दीजे बुधि अपार । करी प्रमाम प्रसन्न कर राजनीत वीसतार ||३||
दोहा--
अन्तिम
लोक सीरकार राजी भोर सब राजी रहे।
__ चाकरी के कीये विन लालच न चाइयै ।। किन हुं की भली बुरी कहिये न काह भागे ।
__सटका है सछन कछु म आप साई है। राय के उजीर नमु राख राख लेत रंग।
येक टेक हुं की बात उमरनीवाहिये । रीझ खीझ सिरकुं चढाय लीजे जसुराम ।
येक परापत कु येते गुन चाहीये ॥४॥