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छंद एवं अलङ्कार ३२७५. छंदकोश"....! पत्र सं० २ से २५ । प्रा० १०४४३ च । भाषा-संस्कृत । विषय-छंद शास्त्र । र० काल - । ० काल X । अपूर्ण । वे म०६७ । च भण्डार |
३२७६. नंदितान्यछद"....! पत्र सं०७। प्रा &xx इस । भाषा--प्राकृत । विषय-छंद गास्त्री र० काल X| ले. काल X । ० सं० ४५७ । ब भण्डार ।
३२७३. पिंगलछंदशास्त्र-माखनकवि । पत्र सं० ४६ । प्रा० १३४ इंच। भाषा-हिन्दी। विषय-छंदशास्त्र । र० काल सं० १८६३ । ले. काल ४ ! अपूर्ण । के. सं० ६४४ । न भाडार ।
विशेष--४६ से आगे पत्र नहीं हैं।
आदिभाग
यो गगोशायनमः प्रथ पिंगल | संवैया।
मंगल श्री गुरुदेव गणेश विपान गुपाल गिरा सरसानी। वेदन के पद पंकज पावन माखन चंब विलास बखानी। कोविद द ईदनि को कल्पद्रुम का मधु का काम निधानी । सारद ईदु ममूष निसोतल सुन्दर संस सुधारस बानी ॥१॥
दोहा
पिंगल सागर छंदमरिण वरण वरण बहुरङ्ग । रस उपमा अमेय तें सुंदर प्ररथ तरंत २ ताते रच्या विचार के नर बोनी नरहैत । उदाहरण बहु रमन के वरण सुमति समेत । ३ विमल घरण भूषन कसित, बानी हलित रसाल । सदा सुकवि गोपाल कौं, श्री गोपाल कृपाल 11४|| तिन सुत माखन नाम है, उक्ति युक्ति त हीन | एक समै गोपाल कवि, सासन हरियह दीन ।।५।। पिगल नाग विद्यारि मन, नारी बांनीहि प्रकास । प्रथा सुमति सौ कीजिये, माखन छंद विनास ॥६॥
दोहरागीत
यह सुकवि श्री गोपाल को मुम भई सासन है जई। पद जुगल वंचन सुनिये उर सुमति बाढी है तये । पति निम्न पिंगल सिंधु मैं मनमीन ह्न करि संचिरयौ । मधि काति छंद बिलास माखन कविन सौ बिनती कस्यौ।।