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कथा-साहित्य ] अन्तिम
भेद भलो जागो इक सार | जे सुएिसी ते उतर पार। हीन पद प्रक्षर जो होय । जको समारो मुरिणयर लोय ॥२८६।। मैं म्हारी बुधि मारू कही । गुणियर लोग सवारो सही। जे ता तणो कहै निरताय । सुरगता सगला पातिग जाइ ॥२६॥ लिखिवा चाल्यौ सुख नित लहो, जै साधा का गुरग यो कहाँ । यामै भोलो कोइ नही, वेद चौपइ कही ।।११।। यास भलो मालपुरो जाणि । टोक मही सो कियो वखाण । जठे असे माहाजन लोग । पान फूल का कीजे भोग ॥१२॥ पौरिण छतीसौं लीला करें | दुख घे पेट न कोइ भरं । राइस्यंत्र जो राजा बसाणि । चौर चवाहन राखे माणि ।।३।। जीव दया को प्रधिक मुभाव । सबै मलाई साथै हाय । पलिसाहा बंदि दीन्ही छोडि । बुरी कही भवि मुरौ बहोडि ।।६।।1 धनि हिंदवारणो राज वखाणि । जह मैं सीसोद्यो सो जागि। जीव दया को सदा वीचार । रति तरणी राखं प्राधार ।।६।। कीरति कहो कहा लगि जाणि । जीव दया सह पाले मारिण । इह विधि सगला कर जगीस । राजा जीज्यो सौ अरु बोस ।।६।। एता बरस मै भोलो नहीं । बेटा पोता फल ज्यो सही । दुखिया का दुख टाल आय। परमेस्वर जी करे सहाय II७|| इ पुन्य तणो कोइ नहीं पार | वैदि खलास करे ते सार। बाकी बुरी कहे नर कोइ । जन्म प्रापणो चाले खोइ ।।९।। संवत् सौलह से प्रमाण । उपर सही इतासौ जाण। निन्याएवं कला निरदोष । जीव सबै पावै पोष ।।६।। भाद्रव सुदी तेरस सनिवार । कडा तीन से पट अधिकाय ।
इ सुणता सुख पासी देह । पाप समाही कर सनेह ।।३००। इति श्री श्रेणिक चौपइ संपूरण मीती कात्तिक सुदि १३ सनीसरवार ककें सं० १८२६ काडी ग्रामे लोम्मत वखतसागर बांचे जहने निम्सकार नमोस्तं पांच ज्यो जी।
२७८२. सप्तपरमस्थानकथा-पावार्य चन्द्रकीत्ति । पत्र सं० ११ । प्रा० ६३४४ इंच। भाषासंस्कृत । विषय-कथा। र० काल X। ले. काल सं० १६८६ आसोज बुदी १३ । पूर्ण । ० सं० ३५० । न भण्डार ।