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[ कथा-साहित्य
बिशेष प्रादि अंत भाग निम्न प्रकार है।
श्री नागमंता लिख्यते
नगर हीरापुर पाटरग भरणीयइ, माहि हर केशरदेव । नमरिण करइ वर नाम लेई नई, करइ तुम्हारी सेव ।।१।। करह तुम्हारी सेवनई, वसिगराइ तेडावीया । काल ककोडनई तित्यगितंयर, प्रवर वेग बोलावीया ॥२॥ नाद वेद पारणंद अधिका, करइ तुम्हारी सेव । नगर हीरापुर पाटण भरणीयह, माहि हर केशरदेव ।।३।। राउ देहरासर बइठठ, प्राणे निरमल नीर । ईक गयउ भागीरथी, समुद्रह पइलइ तीर ॥४॥ नीर लेई उंक मोकल्यउ लागी प्रति घणवार । मा सवारथ पडीउ लोभइ, समुद्र परलेपार ॥५॥ सहस्र अध्यासी जिहां देवता, जाई तिणवनि पइठ । मंगा तणउ प्रवाह लु पायउ, राउ देहरा सरवई छन ।६। राम मोकल्या छ वाडीये, माणे सुर ही जाइ । प्राणे सुरही पातरी, आणे सुरही भाइ ।।७।। माणे सुरही भाइ नर, मारणे सुगंधी पातरी। माकतुल छीनइ पाषची, करि कण बोर सुरातडी 1140 जाइ बेउल करणउ, केवडो राइ मात्र कुंव जु सारी । पुष्फ करंडक भरीनर, माथो राइमो कल्याछई बाढी ।।"
एक कामिरिण प्रवर बाली, विछोही भरतार । जंक तणह शिर बरसही, ताल्हण प्रमी संचारि॥ ताल्हरण प्रमीय संचारि, मुझ प्रिय मरइ प्रसूटइ । भाजि लहरि विष धंघालिउ, ताल्ह धवल नई ऊठ रदन करइ मुख वाह हउं सु सनेहा टाली। बिछोही भरतार एक कामिणि अरु माली ॥३।। हाकKडा कल बाजही, बहु कांसी झमकार ।