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________________ लिपियां करवा कर भंडारों में विराजमान करने की परम्परा है । इसी तरह आचार्य कुन्दकुन्द कृत पंचास्तिकाय की सबसे प्राचीन प्रति है जो संवत् १४८७ की लिखी हुई है। ग्रंथ भंडार में प्राचीन प्रतियों में भ. हर्षकीर्ति का अनेकार्धशत संवत् १६६७, धर्मकीति की कौमुदीकथा संवत् १६६३, पद्मनन्दि श्रावकाचार संवत् १६१३, भ, शुभचंद्र कृत पाण्डवपुराण सं. १६१३, बनारसी विलास सं० १७१५, मुनि श्रीचन्द कृत पुराणसार सं० १५४३, के नाम उल्लेखनीय हैं। भंडार में संवत् १५३० की किरातार्जुनीय की भी एक सुन्दर प्रति है । दशरथ निगोल्या ने धर्म परीक्षा की भाषा संवत् १७१८ में पूर्ण की थी। इसके एक वर्ष बाद सं. १७१६ की ही लिखी हुई भंडार में एक प्रति संग्रहीत है। इसी भंडार में महेश कथि कृत हम्मीररासी की भी एक प्रति है जो हिन्दी की एक सुन्दर रचना है 1 किशनलाल कृत कृष्णबालविलास की प्रति भी उल्लेखनीय है। शास्त्र भंडार में ६६ गुटके हैं। जिनमें भी हिन्दी एवं संस्कृत पाठों का अच्छा संग्रह है। इनमें हर्षकवि कृत चंद्रहसकथा सं० १७०८, हरिदास की ज्ञानोपदेश बत्तीसी (हिन्दी) मुनिभद्र कृत शांतिनाथ स्तोत्र ( संस्कृत ) आदि महत्वपूर्ण रचनायें हैं। ७. शास्त्र भंडार दि. जैन मन्दिर छोटे दीवानजी जयपुर ( च भंडार ) (श्रीचन्द्रप्रभ दि० जैन सरस्वती भवन) यह सरस्वती भवन छोटे दीवानजी के मन्दिर में स्थित है जो अमरचंदजी दीवान के मन्दिर के नाम से भी प्रसिद्ध है । ये जयपुर के एक लंबे समय तक दीवान रहे थे । इनके पिता शिवजीलालजी भी महाराजा जगतसिंहजी के समय में दीवान थे । इन्होंने भी जयपुर में ही एक मन्दिर का निर्माण कराया था। इसलिये जो मन्दिर इन्होंने धनाया था वह बड़े दीवानजी का मन्दिर कहलाता है और दीवान अमरचंदजी द्वारा बनाया हुआ है वह छोटे दीवानजी के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध है। दोनों ही विशाल एवं कला पूर्ण मन्दिर हैं तथा दोनों ही गुमान पंथ थाम्नाप के मन्दिर है। भंडार में ८३० हस्तलिखित ग्रंथ है। सभी ग्रंथ कागज पर लिखे हुये हैं। यहां संस्कृत ग्रंथों का विशेषतः पूजा एवं सिद्धान्त ग्रंथों का अधिक संग्रह है । ग्रंथों को भाषा के अनुसार निम्न प्रकार विभाजित किया जा सकता है। संस्कृत ४१८, प्राकत ६८, अपभ्रंश ४, हिन्दी ३४० इसी तरह विषयानुसार जो अंथ है के निम्न प्रकार हैं। धर्म एवं सिद्धान्त १४७, अध्यात्म ६२, पुराण ३०, कथा ३८, पूजा साहित्य १५२, स्तोत्र १ अन्य विषय ३२०1 इन ग्रंथों के संग्रह करने में स्वयं अमरचंदजी दीवान ने बहुत रूचि ली थी क्योंकि उनके
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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