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है। गुटकों में स्तोत्रों एवं कधाओं का अच्छा संग्रह है । श्रायुर्वेद के सैकड़ों नुसखे इन्हीं गुदकों में लिखे हुये हैं जिनका आयुर्वेदिक विद्वानों द्वारा अध्ययन किया जाना आवश्यक है 1 इसी तरह विभिन्न जैन विद्वानों द्वारा लिखे हुये हिन्दी पदों का भी इन गुटकों में एवं स्वतन्त्र रूप से बहुत अच्छा संग्रह मिलता है। हिन्दी के प्रायः सभी जैन कवियों ने हिन्दी में पद लिखे हैं जिनका अभी तक हमें कोई परिचय नहीं मिलता है। इसलिये इस दृष्टि से भी गुटकों का संग्रह महत्वपूर्ण है । जैन विद्वानों के पद श्राध्यात्मिक एवं स्तुति परक दोनों ही है और उनकी तुलना हिन्दी के अच्छे से अच्छे कवि के पदों से की जा सकती है। जैन विद्वानों के अतिरिक्त कबीर, सूरदास, मलूकराम, श्रादि कवियों के पदों का संग्रह भी इस भंद्वार में मिलता है।
अज्ञात एवं महत्वपूर्ण ग्रंथ शास्त्र भंडार में संस्कृत, अपभ्रंश, हिन्दी एवं राजस्थानी भाषा में लिखें हुये सैकड़ों अज्ञात ग्रंथ प्राप्त हुये हैं जिनमें से कुछ ग्रंथों का संक्षिप्त परिचय आगे दिया गया है। संस्कृत भाषा के मंथों में प्रतकथा कोष ( सकलकीर्ति एवं देवेन्द्रकीति ) आशाधर कृत भूपाल चतुर्विंशति स्तोत्र की संस्कृत टीका एषं रत्नत्रय विधि भट्टारक सकलकीति का परमात्मराज स्तोत्र, भट्टारक प्रभाचंद का मुनिसुत्रत छंद, आशाधर के शिष्य विनयचंद की भूपालचतुर्विशति स्तोत्र की टीका के नाम उल्लेखनीय हैं। अपभ्रंश भापा के ग्रंथों में लक्ष्मण देव कृत मिणाह चरिउ, नरसेन की जिनरात्रिविधान कथा, मुनिगुणभद्र का रोहिणी विधान एवं दशलक्षण कथा, विमल सेन की सुगंधदशमीकथा अज्ञात रचनायें हैं। हिन्दी भाषा की रचनाओं में रल्ह कविकृत जिनदत्त चौपई (सं. १३५४ ) मुनिसकलकीर्ति की कर्मचूरि वैलि (१७ वीं शताब्दी) ब्रह्म गुलाल का समोशरणवर्णन, ( १७ वीं शताब्दी) विश्वभूषण कृत पाय नाथ चरित्र, कृपाराम का ज्योतिप सार, पृथ्वीराज कृत कृष्णरुक्मिणीवेलि की हिन्दी गदा टीका, यूचराज का भुवनकीर्ति गीत, ( १७ वीं शताब्दी) विहारी सतसई पर हरिचरणदास की हिन्दी गद्य टीका, वथा उनका ही करिवल्लभ ग्रंथ, पद्मभगत का कृष्णरुक्मिणीमंगल, हीरकवि का. सागरदत्त चरित ( १७ वीं शताब्दी ) कल्याणकीति का चारुदत्त चरित, हरिवंश पुराण की हिन्दी गा टीका आदि ऐसी रचनाएं हैं जिनके सम्बन्ध में हम पहिले अन्धकार में थे । जिनदत्त चौपई १३ वीं शताब्दी की हिन्दी पद्य रचना है
और अब तक उपलब्ध सभी रचनाओं से प्राचीन है । इसी प्रकार अन्य सभी रचनायें महत्वपूर्ण हैं। अंध भंडार की दशा संतोषप्रद है । अधिकांश ग्रंथ बेष्टनों में रखे हुये हैं।
२. बाबा दुलीचन्द का शास्त्र भंडार ( क भंडार ) बाया दुलीचन्द का शास्त्र भंडार दि जैन बड़ा तेरहपंथी मन्दिर में स्थित है। इस मन्दिर में वो शास्त्र भंडार है जिनमें एक शास्त्र भंडार की ग्रंथ सूची एवं उसका परिचय प्रथसूची द्वितीय भाग में