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अन्तिमबंध उ सत्ता बसा ग्रन्थ विभंगीसार
काल
जागा
मू प्रमुद्ध सुधारमु नारण, बुद्धि में साहिब राम मुझकू बुध दई, नगर पचेवर मांही सही । मुझ उतपत दगी के माहि,
नगरपवर माहिगयो, पादिना
भोकर
बखाए । १२ ॥
श्रावक कुल गंगवाल कहाहिं ।। १३ ।।
पायति भयो, नैस्पचन्द के शिप्स म भयो ।
दर्शा दियां ॥ १४ ॥
शीतल जिनकू करि परिणाम स्वपर कारण से कई बखा ।। १४ ।! मंत्रा का कला, वासी उप
उत सुरास प्रथ सम होय, तुभ्य बंध बुधि
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॥ १६ ॥ इति श्री उदे बंध सत्ता समझा ।।
इससे आगे भीषीस ठाणा की चौपाई है प्रारम्भदेव धर्म गुरु ग्रन्थ पत्र बंदों मन वच काय पठानि परि ग्रन्थ की रचना कहूंगा 13 अन्तिम विधि जस गुणस्थान की रचना सार ह
भूल चूक जो होय तो यदि मंगसिर कृष्ण की
[सितम् एवं चर्चा
निधार
लावा नगर अभार ।
उगाहीसे ग्ररु पांच के साल जाय श्रीलाल ॥
॥ इति सम्पूर्ण
५०६. भगवतीसूत्र-पत्र सं० २०० ११००५ ३ इच भागाप्राविषय-आगम १०८
पूर्ण वे० सं० २२०७ । भण्डार |
२२७. भाषत्रिभंगी - नेमिवधार्यपत्र सं० २१० १९८५ भाष
चित्र | काल X ० काल X। पूर्ण व सं० ५५६ के भण्डार
विशेष-प्रथम पत्र दुबारा लिखा गया है।
४. प्रति सं०२ पत्र सं० ५४ १ ० का रूप से सन्य की प्रतिलिपि ५२६. भवदीपिका भाषा काल पूर्ण ५३०. मरणकरंडिका पत्र सं २६४४ ना विपि काले काल । पूर्णं । ० सं०६ 1
पत्र [सं० २०२७ भाषा हिन्दी वियसिद्धान्त । ०५६७ । भण्डार
० १८११ माघ गुदी ५० में की थी।