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माहित्य जगत् में तो मुक्तियों का प्रयोग महलता से पाया जाता ही है। झोंपड़ी से लेकर पहलों तक, मिनिस-प्रशिक्षित सभी क्गों में अपने दैनिक बोल. चाल में भी मुक्तियों का प्रयोग सामान्य बात है।
जीवन के प्राय: सभी क्षेत्रों, विषयों, अंगों यथा-नीति, गुण, परम्परा, विश्वास, लोक-महार, सुस्ता समृद्धि, प्रापति विपर्यास, धार्मिक सिद्धान्त, सुत्सबत्योहार आदि सभी से सम्बन्धित सूक्तियां जनसामान्य में प्रचलित व साहित्य में विद्यमान हैं । उल्लिखित है । एक ही अभिप्राय: को घोषित करनेवाली सैकड़ों सूक्तियां विश्व की विभिन्न भाषाओं में उपलब्ध होती हैं।
सूक्तियों की लोकप्रियता उनको मूल्यबसा के कारण है। सूक्तियां साहित्यदोहन से प्राप्त अमृत है । वास्तव में सूक्तियां कालजयी, देश-काल की सीमा से मुक्त, अ-मृप्त होती हैं।
भारत में प्राचीनकाल से ही सूस्ति सुभाषिप्त संग्रहों की सुद्ध परम्परा चली मा रही है। यत्र-तत्र बिखरी हैं। सुलभ सामग्री को एक मजूम में लायोजित, एकरित, मंगहीत करना जिससे उसके गौरव-मूल्य-महत्व प्रादि से लाभ लेना मानव लिए सुलभ हो सके, यही उद्देश्य होता है सुक्ति संग्रह का।
पुराण मुक्तियों के भण्डार हैं। उनकी सूक्तियों से जनसामान्य लाभान्वित हो इसी इण्टिकोण में जैनविद्या संस्थान द्वारा संस्कृत भाषा के पांच प्रमुख जैन पुराणों यथा-महापुराण, हरिवंशपुराण, पदमपुराण, पाण्डवपुराण एवं वीर अधमानचरित में से मुक्तियों का संकलन कर प्रकाशन किया जा रहा है।
से मूक्तियां प्राहार-विहार, लोक-परलोक, जीवन-मृत्यु मादि विषयों से सम्बन्धित हैं। इनमें कही गम्भीर मार्गनिकता का पुट है तो कहीं सहज व्यावहा• रिकता की झलक । हीं सदाचार का पाठ है, कहीं परोपकार, दान, करुणा, प्रादि सुसंस्कारों की शिक्षा है तो कहीं अनीति के दुष्परिणामों से अवगत कराकर उनके लिये वर्जना 1 माही खौकिक धर्म की धारा प्रवाहित है तो कहीं वैराग्य की सरिता ।
धम गूक्तियों के संकलम, सम्पादन, अफरीडिंग हेतु भी सहयोगी धन्यवादाई हैं 1
जर्नल प्रेस के स्वामी श्री अजय काला भी इसके मुद्रा के लिए धन्यवाद के पात्र हैं।
जयपुर भीर शासन अयन्ती भाषण १० १.वी. नि. म. २५१३
११.७-७
मानचन्द्र खिचूका
संयोजक अनविता संस्थान समिति
श्रीमहावीरनी