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है ।प्रथम अध्याय का प्रमाण लक्षण निर्णय, द्वितीय अध्याय का प्रत्यक्ष निर्णय, तृतीय अध्याय का परोक्ष निर्णय और चतुर्थ अध्याय का नामकरण आगम निर्णय है।इस ग्रन्थ में जैन न्याय सम्मत प्रमाणत्रय का विवेचन है। अद्यावधि इस ग्रन्थ पर हिन्दी भाषा में कोई अनुवाद, टीका टिप्पणी या व्याख्या उपलब्ध नहीं थी। __डॉ. सूरजमुखी जैन, सेवानिवृत्त प्राचार्य-स्थानकवासी जैन कालेज बड़ौत ने सर्वप्रथम इसका हिन्दी में अनुवाद किया है।इस अनुवाद के पढ़ने से उनके परिश्रम, सूझ बूझ एवं न्यायसदृश कठिन विषय को सरल शब्दों में प्रतिपादन की क्षमता के दर्शन होते है। मैं आशा करता हूँ कि प्रमाणनिर्णय की अनुवादिका यहीं विराम नहीं लेगी तथा वादिराज सूरि के न्याय विनिश्चय विवरण पर भी हिन्दी में समीक्षा व्याख्या लिखेंगी ताकि उनके न्यायशास्त्रज्ञता का लाभ न्याय के अन्य जिज्ञासुओं को भी मिल सके।
प्राचीन आचार्यों की कृतियों को आधुनिक पद्धति से सम्पादित कराके प्रकाशित करना समाज का कर्तव्य है।इस कृति के प्रकाशन की बेला में मैं अनेकान्त ज्ञान मंदिर बीना के सर्वस्व श्री ब्र. संदीप 'सरल' जी एवं डॉ सूरजमुखी जैन को प्रणाम करता हूँ तथा डॉ. जैन से अपेक्षा करता हूँ कि वे साहित्य सपर्या के क्षेत्र में और अधिक अवदान से समाज को उपकृत करें।
डॉ. जयकुमार जैन मुजफ्फरनगर (उ०प्र०)