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________________ का अवश्यक कारण नहीं है।आचार्य कहते हैं-यह कहना ठीक नहीं है, जनश्रुति मात्र पर विश्वास करने से व्यभिचार की कल्पना नहीं की जा सकती है, अन्यथा “अयं पितृप्रभवः पुत्रत्वात्" यहां पुत्र के पिता से उत्पन्न होने का अनुमान भी नहीं किया जा सकता, द्रोण के समान बिना पिता के भी पुत्रत्व की संभावना होने से वहां भी जनश्रुति है कि द्रोण कलश से उत्पन्न हुए थे।ऐसा होने पर भी उत्तरोदय के प्रति आज के सूर्य को अकार्यत्व क्यों है?यदि ऐसा कहते हो तो उसके उससे पहले होने के कारण।यदि फिर भी उत्तर को कारण मानोगे तो "प्राग्भावः सर्वहेतुना"|इस कथन का विरोध होगा |उसके प्रति अकारणत्व है, चिर व्यवहित होने के कारण, तत्काल प्राप्ति का अभाव होने से अन्यथा चिरव्यवहित तथा तत्काल प्राप्ति नहीं होने पर भी अविद्या, तृष्णा आदि से मोक्ष प्राप्त के भी संसार की उत्पत्ति होने से किसी की भी आत्यन्तिकी मुक्ति नहीं होगी। 189 ।। कथं पुनः पुनरतत्स्वभावस्यातत्कार्यस्य च तदुदयस्य तत्राविनाभावो गवादेस्तादृशस्याश्वादौ तदनवलोकनादिति चेत्, तत्स्वभावादेरपि कथं? - चूतत्वस्य तत्स्वभावत्वेऽपि वृक्षत्वे, भस्मनस्तत्कार्यत्वेऽपि पावके तदनवलोकनात्। कथमन्यथा चूतत्वं लतायां निर्दहनमपि भस्मं भवेत् |विशिष्टस्यैव तस्य वृक्षत्वादौ नियमो न तन्मात्रस्य तथाप्रतीतेरिति चेत्, सिद्धमिदानीमस्वभावादेरप्यद्यतनतपनोदयस्य श्वस्तनतदुदयं प्रत्यविनाभावित्वं, तथा प्रतीतेः, न गवादेर श्वादिकं प्रति विपर्य' यात्।ततो युक्तमविनाभावसंभवादस्वभावादेरपि लिंगत्वम् । एवमन्यदपि विधिसाधनं प्रतिपत्तव्यम् ।।90 ।। बौद्ध कहते हैं-दूसरे दिन के सूर्योदय से पहले दिन के सूर्योदय को अतत्स्वभाव और अतत्कार्य होने पर भी उसका दसरे दिन के सर्योदय के साथ अविनाभाव कैसे सिद्ध होगा, अतत्स्वभाव और अतत्कार्य गवादि का कुत्ते आदि में अविनाभाव नहीं देखा जाने से।यदि ऐसा कहते हो तो तत्स्वभावादि का भी अविनाभाव कैसे है?आम्रत्व का तत्स्वभाव होने पर भी वृक्षत्व में तथा भस्म का तत्कार्य होने पर भी अग्नि में अविनाभाव नहीं देखा जाने से। यदि अविनाभाव होता तो लता में आम्रत्व और अग्नि रहित भस्म कैसे होता ?यदि यह कहो कि विशिष्ट आम्रत्व और भस्म का ही वृक्षत्व तथा अग्नित्व के साथ अविनाभाव है, आम्र तथा भस्म मात्र का नहीं, उस प्रकार प्रतीति नहीं होने से तो अतत्स्वभाव और अतत्कार्य आज के सूर्योदय को कल के सूर्योदय के साथ अविनाभाव सिद्ध ही हो जाता है, ऐसी प्रतीति होने से, गवादि का अश्वादि के प्रति लिंगत्व नहीं सिद्ध होता, अविनाभाव नहीं होने से ।अविनाभाव के होने पर अत्स्वभाव और अतत्कार्य को भी लिंगत्व सिद्ध होता है।इसी प्रकार अन्य भी विधि साधन जानना चाहिये। 19011 सौगत । साध्ये। चूतत्वस्य तरुणा सह भस्मनश्च सह पावकेनाविनाभावोऽस्तीति चेत् । अग्निना सहितं। नियमस्य। लिंगत्वं। अविना भावित्व नास्तीत्यर्थः ।
SR No.090368
Book TitlePramana Nirnay
Original Sutra AuthorVadirajsuri
AuthorSurajmukhi Jain
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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