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प्रकाशकीय
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जैन न्याय के मूर्धन्य, तार्किक शिरोमणि आचार्य वादिराज सूरि विरचित प्रमाण निर्णय ग्रंथ मूल एवं हिन्दी अनुवाद सम्पादन के साथ प्रथम बार प्रकाशित करते हुए गौरव का अनुभव हो रहा है। लगभग ८५ वर्ष पूर्व माणिकचन्द्र दिग० जैन ग्रंथमाला बम्बई द्वारा वीर नि० संवत् २४४३ में ग्रन्थमाला के दशम् पुष्प के रूप में मूल ग्रन्थ का प्रकाशन किया गया था। बहुत लम्बे समय से ग्रंथ अप्राप्य था ।
न्यायाचार्य डॉ० दरबारी लाल कोठिया, बीना के पास न्याय ग्रंथों के अध्ययन का सुअवसर मेरे लिए प्राप्त हुआ। डॉ० कोठिया जी सदैव प्रेरणा देते रहते थे कि जिन न्याय ग्रन्थों को हम प्रकाश में नहीं ला पाये हैं, उन ग्रन्थों को प्रकाश में लाने का कार्य आपको करना है।
विद्वानों की नगरी बीना में अनेकांत ज्ञान मंदिर शोध संस्थान की स्थापना कर दुर्लभ अप्राप्य ग्रन्थों का संकलन, संरक्षण एवं प्रचार-प्रसार के दुरूह कार्य को अपने निर्बल कंधों पर लेकर माँ भारती की सेवा का व्रत लेकर अपने सम्पूर्ण जीवन को साहित्यक सेवा में अर्पित कर अपने पूज्य गुरूवर श्री १०८ सरल सागर जी महाराज से भी न्याय ग्रन्थों की उपयोगिता एवं जिज्ञासा को प्राप्तकर एक नई जीवन ज्योति मिली ।
अनेकांत ज्ञान मंदिर शोध संस्थान, बीना का यही पवित्र उद्देश्य है कि अप्रकाशित अथवा बहुमूल्य, दुर्लभ, अति उपयोगी ग्रन्थों को प्रकाशित कर आर्ष परम्परा को सुरक्षित करें। इस दिशा में संस्थान शनैः शनैः अपने लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है।
आचार्य वादिराज जी ने प्रस्तुत ग्रन्थ में प्रमाण विषयक विपुल सामग्री प्रस्तुत कर इस लघुकाय ग्रन्थ को उपयोगी बना दिया है। न्याय जैसे दुरूह ग्रन्थों का शब्दशः अनुवाद करना सरल कार्य नहीं है किन्तु जैन न्याय की विदुषी डॉ० सूरजमुखी जैन ने निःस्वार्थ रूप से ग्रन्थ अनुवाद का कार्य करके बहुत बड़े अभाव की पूर्ति की है। डॉ० सूरजमुखी जी अनेकांत ज्ञान मंदिर के उत्तरोत्तर विकास में संलग्न हैं । आप द्वारा मॉ सरस्वती की जो सेवा की जा रही है, वह अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय है।