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राजा मारिदत्त के कर्मचारी उन्हें पकड़कर राजा के पास देवी के मंदिर में नर युगल की बलि चढ़ाने के लिये ले गये ।राजा के द्वारा उन सुन्दर नर युगल से उनका परिचय पूछने पर उन्होंने सम्पूर्ण वृत्तान्त राजा को बताया,जिसे सुनकर राजा भी आश्चर्यचकित रह गया और उनके गुरू आचार्य सुदत्त के पास जाकर स्वयं भी दीक्षा धारण कर ली।
____ काव्य गुणों की दृष्टि से यशोधर चरित समृद्ध काव्य है।रस, अलंकार और उक्ति वैशिष्ट्य के साथ कथावस्तु में मर्मस्पर्शी स्थलों की सफल योजना की गयी है,व्यंजनावृत्ति का भी कवि ने उपयोग किया है।इस काव्य में संगीत का महत्त्व भी दिखाया गया है। संगीत में कितनी शक्ति है,यह रानी अमृतमती की घटना से सिद्ध है। अष्टभ्रग के कुरूप, अधेड़ और वीभत्स आकृति होने पर भी उसके कंठ में अमृत है, यही कारण है कि रानी उस पर मुग्ध हो जाती है। एकीभाव स्तोत्र
इस स्तोत्र में भक्तिभावना का महत्त्व प्रदर्शित किया गया है।भक्तिभाव में तन्मय होकर स्तोत्र की रचना से ही कवि का कुष्ठ रोग दूर हो गया था ।इस स्तोत्र में २६ पद्य हैं २५ पद्य मन्दाकान्ता में है और एक पद्य स्वागता में। आचार्य स्तोत्र के प्रारंभ में ही कहते
एकीभावं गत इव मया यः स्वयं कर्मबंधो, घोरं दुःख भवभवगतो दुर्निवारः करोति। तस्याप्यस्य त्वयि जिनरवे भक्तिरून्मुक्तयेचेत्
जेतुं शक्यो भवति न तया कोऽपर स्तापहेतुः।' हे भगवान जब आपकी भक्ति से भव भव में दुःख देनेवाला कर्मबन्ध भी दूर हो जाता है अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है,तो अन्य सांसारिक संताप के कारण दूर हो जायें तो इसमें क्या आश्चर्य है?
भक्तिभाव में तन्मय होने पर समस्त मंगलों के द्वार खुल जाते हैं। आचार्य इसी तन्मयता की स्थिति का चित्रण करते हुए कहते हैं
आनन्दाश्रुस्नपित वदनं गद्गदं चाभिजलपन , याश्चायेत त्वयि दृढ़मनाः स्तोत्रमन्त्रैर्भवन्तम्। तस्याभ्यस्तादपि च सुचिरं देह वल्मीकमध्यान् ,
निष्कास्यन्ते विविध विषम व्याधयः काद्रवेयाः।। हे भगवान आपमें स्थिर चित्त होकर हर्षाश्रुओं से विलिप्त गद्गद् वाणी से स्तोत्र मन्त्रों द्वारा आपकी जो पूजा करता है,उसकी बहुत समय से रहने वाली व्याधियां भी शरीर से ऐसे ही निकल भागती हैं जैसे कि सपेरे की बीन को सुनकर सर्प वामी में से निकल पड़ते हैं।
१ एकीभाव स्तोत्र, वादिराज सूरि, १ 2. एकीभाव स्तोत्र, वादिराज सूरी ३.