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________________ अनेकान्त ज्ञान मंदिर शोध संस्थान बीना के प्रकाशन 1. पंचकल्याणक गजरथ समीक्षा :- पूज्य मुनिश्री 108 सरल सागर जी महाराज द्वारा रचित इस कृति में पंचकल्याणों की महत्त्वहीनता एवं पंचकल्याणक के नाम पर आडम्बर प्रदर्शन का पर्दाफास करने के साथ-साथ "बोलियाँ पाप हैं समाज के लिए अभिशाप हैं" आदि विषयों पर लेखक ने निर्भीकता का परिचय देते हुए कांतिकारी कृति विद्वत् समाज के लिए समर्पित की है। इस कृति का द्वितीय संशोधित संस्करण संस्थान ने प्रकाशित किया है। 2. समाधि समीक्षा :- इस समीक्षा में लेखक ने साधक के लिए समाधि के बाधक एवं साधक कारणों पर प्रकाश डालते हुए पुस्तक को तीन अध्यायों में विभक्त किया है। 3. त्यौहार समीक्षा :- इस समीक्षा में लेखक ने राष्ट्रीयपर्व स्वतंत्रता दिवस समीक्षा, गणतंत्र दिवस समीक्षा, साम्प्रदायिक पार्टी समीक्षा पर विशद प्रकाश डाला है। साम्प्रदायिक एवं धर्म निरपेक्ष समीक्षा में धर्म निरपेक्षता का स्पष्टीकरण किया है। भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षा पद्धति समीक्षा में विदेशी शिक्षा को संस्कार विहीन, नैतिक पतन का मूल कारण बतलाया है। सामाजिक पर्यों में दीपावली, त्यौहार समीक्षा, रक्षाबंधन त्यौहार समीक्षा एवं होली त्यौहार समीक्षा के अन्तर्गत इन त्यौहारों के विकृत स्वरूप पर पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। 4. चातुर्मास समीक्षा :- श्रमण संस्कृति के क्रान्तिकारी लेखक ने चातुर्मास समीक्षा में चातुर्मास के आदिकाल से चातुर्मास समाप्ति पर्यन्त उन समस्त प्रकार के विकल्पों को उठाया है जो चातुर्मास के अंग न होकर अभिन्न अंग बन चुके हैं। मुनि श्री 108 सरल सागर जी महाराज द्वारा लिखी गई यह नवमी समीक्षा है। इसका प्रकाशन भी इस संस्थान ने किया है। 5.अनेकान्त भवन ग्रन्थरत्नावली -1,2 - संस्थान के संस्थापक ब्र0 संदीप जी 'सरल' के सम्पादकत्व में संस्थान में संरक्षित लगभग 2700 हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का सूचीकरण इसमें किया गया है। शोधार्थियों एवं पुस्तकालयों के लिए अति उपयोगी कृति है। 6. अनेकान्त भवन ग्रन्थरत्नावली -3, भगवान महावीर स्वामी की 2600 वीं जन्म जयंती के पावन प्रसंग पर इसका प्रकाशन किया गया है। संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश एवं हिन्दी विषयक हस्तलिखित पाण्डुलिपियों का सूचीकरण इसमें किया गया है। इसका सम्पदन/संकलन कार्य ब्र0 संदीप जी 'सरल' ने किया है। 7. प्रमाण निर्णय :- आचार्य वादिराज स्वामी द्वारा रचित ग्रन्थ का हिन्दी अनुवाद एवं सम्पादन का कार्य डॉ० सूरजमुखी द्वारा किया गया है। इस न्याय विषयक ग्रन्थ का प्रकाशन भी भगवान महावीर स्वामी की 2600 वीं जन्म जयंजी महोत्सव के अर्न्तगत किया गया है।
SR No.090368
Book TitlePramana Nirnay
Original Sutra AuthorVadirajsuri
AuthorSurajmukhi Jain
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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