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________________ तस्य संभवः सर्वस्याऽपि वस्तुसतस्तेन व्याप्तेः ।ततः शब्दे तदुपलम्यमानं तत्र संशयमावहति, किं श्रावणत्वान्नित्यः शब्द आहोस्विदनित्य इति। "तस्माद - नैकांतिकमिति चेत् न, सत्ववत्तस्यापि तद्विशेषस्य शब्दानित्यत्वे हेतुत्वस्यैवोपपत्ते बहिरन्वयानवगमे कथं तदिति चेत्, सर्वानित्यत्वे सत्वस्यापि कथं?न हि तस्यापि बहिस्तदवगमः सर्वस्य पक्षीकृतत्वेन तबहिभूर्तस्याभावात्। नित्यस्य 'सहक्रमाभ्यामर्थकियावैकल्येन व्योमारविंदवत् सत्वानुपपत्तेः। ततो निश्चितव्यावृत्तिकस्य तस्य पक्ष एव तद्व्याप्तेरवगमादिति चेत्, सिद्धस्तर्हि श्रावणत्वस्यापि तत्रैव तदवगमो विपक्षात्सवस्य व्यावृत्तौ तद्विशेषस्यापि तस्य ततोऽवश्यं तया व्यावृत्तेर्निर्णयात्। निर्विशेषां दपि सत्वात्तदनित्यत्वस्याऽपि सिद्धेः किं तद्विशेषेण श्रावणत्वेनेति चेत् नैवमुत्पत्तिमत्त्वादावपि प्रसंगात् ।ततः सामान्यवत्तद्विशेषस्याऽपि साध्याविनाभावनिर्णये "कदाचित्कु"तश्चित्साध्यप्रतिपत्तेरूपपन्नं तद्विशेषस्याऽपि श्रावणत्वस्य तत्र गमकत्वमतो न तस्यानैकांतिकत्वकल्पनमुपपन्नम् ।।109 ।। संशय करने वाला होने से भी अनैकान्तिक कहना चाहिये जैसे शब्दोऽनित्यःश्रावणत्वात् ।श्रवणत्व का शब्द में उसके नित्यत्व या अनित्यत्व के बिना हेतुत्व नहीं हो सकता।नित्यत्व या अनित्यत्व के बिना उसका अविनाभाव नहीं होने से। नित्यत्व या अनित्यत्व के बिना शब्द नहीं हो सकता, सभी सत वस्तु की नित्यत्व, अनित्यत्व से व्याप्ति होने के कारण।अतः शब्द में उपलभ्यमान श्रावणत्व हेतु संशय उत्पन्न करता है कि श्रावणत्व के कारण शब्द नित्य है कि अनित्य?अतः श्रावणत्व हेतु अनैकान्तिक है, यह कहना ठीक नहीं है।जैसे "सर्व क्षणिक सत्वात् में सत्व हेतु अनित्यत्व को सिद्ध करता है उसी प्रकार सत्वविशेष श्रावणत्व हेतु भी शब्द को अनित्य सिद्ध करने में हेतु ही है, नित्यत्व, अनित्यत्व से बाहर अन्वय का ज्ञान नहीं होने पर वह कैसे हेतु है?यदि यह कहते हो तो सबको अनित्य सिद्ध करने में सत्व को भी कैसे हेतुत्व है?सत्व हेतु का भी बाहर अन्वय ज्ञान नहीं होता, सबको पक्षीकृत करने से उसके बाहर किसी का सदभाव नहीं होने से।नित्य वस्तु में युगपत् या कम से अर्थकिया नहीं होने से आकाश कुसुम के समान सत्व की उपपत्ति नहीं होने से।अतः निश्चित व्यावृत्ति वाले सत्व हेतु की पक्ष में (अनित्यत्व को सिद्ध करने में) ही व्याप्ति का ज्ञान होने से, यदि यह कहते हो तो श्रावणत्व का भी पक्ष (अनित्यत्व) में ही व्याप्ति ज्ञान सिद्ध हो जाता है विपक्ष से सत्व की व्यावृत्ति होने पर सत्व अनित्यत्व। * श्रावणत्वस्य बहिरन्वयाभावेन शब्दनित्यत्वेतरत्वयोरन्यतरत्वसाधकत्वभावेऽपि शब्दः संभविष्यतीत्याकांक्षा प्रतिक्षिपन्नाह । नित्यत्वेनानित्यत्वेन। * संशयमावहति यस्मात्। 5 सर्वमनित्यं सत्वात्। ६ हेतुत्वामिति शेषः । 'यौगपद्य। । श्रावणादिविशेषरहितात्। ' अनित्यः शब्द उत्पत्तिमत्वादित्यादावपि। 10 प्रयोगकाले। 1" श्रावणत्वादिविशेषात्। 78
SR No.090368
Book TitlePramana Nirnay
Original Sutra AuthorVadirajsuri
AuthorSurajmukhi Jain
PublisherAnekant Gyanmandir Shodh Sansthan
Publication Year
Total Pages140
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size14 MB
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