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________________ हमारी पट्टमहादेवी एक तरह से विरक्त हो गयी हैं यह तो तुम जानता हा हो। ऐसे में वह पूरी तरह सम्भव ही नहीं।" "सन्निधान इस विचार से दुखी हैं?" "यह तो दुख है ही। परन्तु इस दुख को सहन करना ही है, क्योंकि उसे अपने लिए हमने खुद उत्पन्न कर लिया है।" "ऐसा कहीं हो सकता है ? सन्निधान उनसे कितना प्रेम करते हैं, यह हमें मालूम नहीं?" "परन्तु अब हम पट्टमहादेवी की दृष्टि में अपवित्र हैं।" "मेरा विचार है कि उन्होंने कभी ऐसी भावना को अपने मन में स्थान नहीं दिया।" "जाने दो, इस विषय की चर्चा अभी हमें नहीं करनी है। हमने अपने हृदय को स्वयं वचन दे रखा है कि हम पट्टमहादेवी की सारी इच्छाओं को पूर्ण करेंगी।" "वह जिस तरह सन्निधान की इच्छाओं को पूर्ण करती हैं।" "सो कैसे मालूम?" "सन्निधान की नजर जब बम्मलदेवी पर लगी, और बाद में लक्ष्मीदेवी के विषय में जब अपनी इच्छा प्रकट की, तब उन्होंने कितने उदार हृदय से सन्निधान को इच्छा को पूर्ण करने के लिए, कितना बड़ा त्याग किया है, इसके लिए मुझसे अच्छा और कोई गवाह चाहिए? हमारी वह इच्छा हमें इतना दुख देगी, इसको उस वक्त कल्पना ही नहीं थी।" "पट्टमहादेवी स्थित प्रज्ञ हैं। उनके किसी काम में कोई दुर्भावना नहीं रहती। हर काम वे उदारता और त्याग-बुद्धि से किया करती हैं। यह उदारता न होती तो पता नहीं, हमारी क्या दशा हुई होती। मैं केवल उनकी अनुवर्तिनी हूँ। थोड़े में ही तृप्ति पा जाती हूँ। मैं समझती हूँ कि जो भी होता है वह हमारी भलाई के ही लिए होता है।" "यह जानकर ही पट्टमहादेवी ने तुमको साथ लेने की सलाह हमें दी थी। "वह सौतों के विषय में कितनी विशाल मनोभावना से व्यवहार करती हैं, इसे समझने के लिए इससे बढ़कर और कौन-सा प्रमाण चाहिए? वह यदि सन्निधान के साथ इस प्रशान्त वातावरण में होती तो सन्निधान को कितना आनन्द मिलता ! उस आनन्द को उतनी ही मात्रा में अनुभव करने का मौका आज पट्टमहादेवीजी की उदारता से मुझे प्राप्त हुआ है। फिर भी उनके प्रति छोटो रानी जी क्यों असन्तुष्ट हैं, यह समझ में नहीं आता।" बिट्टिदेव ने चकित होकर राजलदेवी की ओर देखा। कुछ बोले नहीं। "सन्निधान ऐसा कभी न समझें कि मैं चुगली कर रही हूँ। पट्टमहादेवीजी ने 100 :: पट्टमहादेवा शप्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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