SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजमहल से बाहर आये । रवाना होते समय शान्तलदेवी महाराज के पास आयीं और बोली, "एक बात कहना भूल गयी थी। दोरसमुद्र के एक धनी व्यापारी केसरी शेट्टी अपनी धर्मपत्नी केलेयव्वेजी के साथ चेन्नकेशव के दर्शन के लिए वेलापुरी आये थे। तब राजमहल में आकर एक विनती की थी। उन्होंने कहा था कि उनके बेटे केतमल्ल की इच्छा है कि दोरसमुद्र में एक शिवालय का निर्माण कराएं, इसके लिए सन्निधान स्वीकृति दे दें। जैत्रयात्रा समाप्त कर जब सन्निधान लौटें तो सूचित कर देने की बात मैंने कही थी। इसलिए एक दिन दोरसमुद्र में ठहरकर, सन्निधान केतमल्लजी को बुलवाकर बातचीत कर लें तो अच्छा हो।" "ये सब पट्टमहादेवी और उदयादित्य की जिम्मेदारी के विषय हैं।" LL 'उदयादित्यरस इस समय यहाँ नहीं हैं। अभी मंगली, कोबलालपुर की ही तरफ रह रहे हैं। सन्निधान बातचीत कर सूचित करेंगे तो शेष कार्यों के लिए हमारा मार्गदर्शन रहेगा ही ।' 14 " "सन्निधान की तरफ से स्वयं पट्टमहादेवी ही स्वीकृति दे सकती र्थों न?" 'उनके मन में एक विशाल मन्दिर की कल्पना हैं। ऐसे मन्दिर के निर्माण के लिए सन्निधान की स्वीकृति अत्यन्त आवश्यक है। और फिर ऐसे मन्दिर को अपूर्ण नहीं रहना चाहिए। ऊपर से मन्दिर निर्माण कराने वाले भक्तों के मन को सन्निधान की सीधी स्वीकृति से विशेष सन्तोष और आनन्द होगा।" "ऐसा हो तो पट्टमहादेवी भी साथ चल सकती हैं न?" "जो आज्ञा । पहले वहाँ खबर भेज दी जाए, हम दोरसमुद्र पहुँचें, तब तक वे राजमहल में आकर हमारी प्रतीक्षा करें। बातचीत समाप्त करके मैं साँझ को बेलापुरी लौट आऊंगी।' " "ऐसी जल्दी क्या ?" " कल हमारे पिताजी का जन्मदिन हैं।" " पहले ही मालूम होता तो हम अपनी यात्रा को स्थगित कर देते।" "यह तो हर वर्ष सम्पन्न होने वाला पारिवारिक कार्य है। इसके लिए सन्निधान को यात्रा स्थगित करने की आवश्यकता नहीं।" निश्चयानुसार राजपरिवार रवाना हुआ। पट्टमहादेवी के साथ लौटते वक्त रहने के लिए एक रक्षकदल मायण के नेतृत्व में रवाना हुआ। राजपरिवार दोरसमुद्र में पहुँचा ही था कि केसरिशेट्टी, केलंयव्वे और केतमल्ल, सबने राजमहल के द्वार पर राजपरिवार का स्वागत किया। अल्पाहार के बाद सब जाकर मन्त्रणागार में पहुँचे। शान्तलदेवी ने ही बात शुरू की, "श्रेष्ठी जी! आप जब वेलापुरी आये थे तन्त्र पट्टमहादेवी शन्तला : भाग चार:: 95
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy