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________________ में खबर नहीं मिली थी। उनके पास गुप्तरूप से खबर भेजी गयी कि यदि शत्रु भाग चले हों तो उनका पीछा करने की जरूरत नहीं। ऐसी स्थिति में वे लौटकर राजधानी आ जाएँ। "तलकाडु के युद्ध से लेकर अब तक लगातार, जान की परवाह न कर मातृभूमि के लिए लड़नेवाले योद्धाओं को विश्राम करने का अवकाश देना उचित है। फिलहाल आक्रमण रोककर, विजित प्रदेशों की सुरक्षा-व्यवस्था की ओर ध्यान दिया जाए तो अच्छा होगा। इस तरह से उनमें नये उत्साह का संचार हो सकेगा।" शान्तलदेवी ने परामर्श दिया। स्वीकृति भी मिल गयी और एचम तथा विष्टियण्णा के पास लौट आने की खबर भी भेज दी गयी। तलकाडु, कोबलालपुर, नंगलि, कंची, उच्वंगी और हानुंगल आदि प्रदेशों में उचित सुरक्षा की व्यवस्था की गयी। सभी दण्डनायक राजधानी लौट आये। दो बड़े राज्यों पर विजय पायी गयी थी। इस खुशी में विजयोत्सव मनाने के निश्चय के साथ पोय्सलराज ने अपने को स्वतन्त्र शासक घोषित करने का भी निर्णय किया। साथ ही नोलम्बवाडिगोंड, कंचिगोंड, उच्चंगिगोंड, हागलगोंड, आदियम-हृदयशूल, नरसिंहवर्मनिर्मूलन आदि विरुदावली से राजा निषित हो, यह भी निर्णय लिया गया। परन्तु इस उत्सव को सीमित रूप से ही मनाने का निश्चय हुआ। कारण यह था कि दो साल से भी अधिक समय तक लगातार युद्ध चलता रहा था और इस वजह से राज्य की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं रह गयी थी। इसलिए ग्राम-प्रतिनिधि की हैसियत से नाडगोंडा, और सभी बातों की निगरानी के लिए नियुक्त हेग्गड़े, दण्डनायक, सवारनायक, और कुछ प्रजा--प्रमुख मात्र आमन्त्रित हो और इस उत्सव को चेन्नकेशव स्वामी के मन्दिर में ही मनाया जाए, ऐसा निर्णय किया गया। "प्रतिष्ठा-महोत्सव के समय आचार्यजी नहीं आये, कम से कम अब तो उन्हें बुलवा सकेंगे", एक सलाह दी गयी। "वे अभी बंग देश से लौटे नहीं, उत्सव के समय तक लौट आएं तो बुलवा सकते हैं।' शान्तलदेवी ने कहा। इतना ही नहीं, "उत्सव के समय तक सन्निधान यादवपुरी ही में रहें, और यदि तब तक आचार्यजी लौट आएँ तो उन्हें भी साथ ला सकते हैं।" यह भी सलाह दी। "इसके लिए अभी से वहाँ जाकर बैठे? क्या हमें दूसरा कोई काम नहीं है? उनके लौट आने की खबर मिल जाए, 'तब चाहे स्वयं जाकर उन्हें बुला लाएँगे।" कहकर बिट्टिदेव ने शान्तलदेवी की ओर प्रश्नार्थक दृष्टि से देखा। समझने पर भी उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखायी। उस दिन की वह सभा विसर्जित हुई। उस रात को किसी सूचना के बिना बिट्टिदेव पट्टमहादेवी के शयनागार में पहुंच गये। शान्तलदेवी को एकाएक ऐसी आशा नहीं थी। इसलिए उन्हें अपने विचारलोक पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 87
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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