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________________ बिट्टिदेव को लाभ हुआ, चेंगिरि का खजाना, भण्डार आदि उनके कब्जे में हो गये। रसद की दिक्कत की शंका थी, सो वह अब दर हो गण। उन्होंने आगे बढ़कर कंची के निकट ही अपना डेरा डाल दिया। दो-तीन दिनों में कंची में जो तैयारी हुई थी, उसका पूरा ब्योरा प्राप्त कर लिया और विचार-विमर्श करने के बाद उन्होंने सीधे हमला कर देने का निर्णय ले लिया। कंची पर यह हमला घिट्टिदेव के ही नेतृत्व में किया गया । चोलों के साथ युद्ध कोई आसान काम नहीं था। तलकाडु के युद्ध में जिस रणनीति का प्रयोग किया था, वह यहाँ इस समय कामयाब नहीं होगी, यह सोचकर इस युद्ध में उसका प्रयोग नहीं किया। युद्ध ने भयंकर रूप धारण कर लिया था। दोनों तरफ के सैनिक काफी संख्या में कट परे । दो-तीन पखवाड़े युद्ध चला। अन्त में कंची नगर पोय्सलों के कब्जे में आ गया। विक्रम चोल पकड़े जाने के डर से श्रीरंग की ओर भाग गया। कंची में पोय्सलों का झण्डा फहराकर, उसकी रक्षा के लिए चोकिमय्या को वहाँ तैनात कर बिट्टिदेव ने कंची और गिरि विजय का समाचार वेलापुरी भेज दिया, और स्वयं गंगराज से मिलने के लिए निकल पड़े। गंगराज ने चालुक्यों को हराने के लिए युद्ध जारी रखा था। रास्ते में आराम करने में अधिक समय न लगाकर, आवश्यकतापूर्ति भर के लिए जहाँ-तहाँ थोड़ा समय रुककर, शीघ्र ही गंगराज से जा मिले। पोय्सलों ने तीन तरफ से युद्ध जो करना शुरू किया था, उसका सामना सामन्तों की सम्मिलित सेना भी बड़ी चतुरता से करती रही। हमले का जवाब हमला करके ही दिया जाता रहा। साँप परे न लाठी टूटे, वाली बात चल रहो थी तब । बिट्टिदेव ने पहुंचते ही गंगराज और दण्डनायक से सम्पूर्ण स्थिति की जानकारी प्राप्त की और भावी कार्यक्रम के लिए बिचार-विनिमय किया। यह मालूम हुआ था कि पाण्ड्य इसक्कवेलन की शक्ति औरों से अधिक है। अतः कदम्ब और पाण्ड्यों को पहले जीत लें तो अच्छा होगा, यह निश्चय हुआ। फिर विचार किया गया-एक सैन्य टुकड़ी एचम और बिद्रियण्णा के नेतृत्व में हागल भेजी जाए, और वहाँ, हामुंगल पर, हमला करके उस कब्जे में ले लिया जाय, और दूसरी टुकड़ी स्वयं बिट्टिदेव ने नेतृत्व में मावण और डाकरस दण्डनाथ के साथ उच्चंगी पर हमला कर दें। शेष सेना चालुक्यों का सामना करने के लिए युद्धक्षेत्र में ही रहे। यह भी निश्चय किया गया कि हामुंगल तथा उच्चंगी की ओर सेना के रवाना हो जाने के तीन-चार दिन बाद ही इस बात को प्रकट होने दें। योजना के अनुसार कार्यारम्भ हुआ। यह खबर सुनकर इरुक्कवेलन पाण्ड्य के लिए वाघात-सा हुआ। पल्लबों के बाद नोलम्बवाडी को अपने कब्जे में करके वह बड़े ठाठ के साथ उच्चगी को केन्द्र बनाकर, वहाँ चालुक्यों का माण्डलिक बनकर, राज पट्टमहादेवी शान्तला : भाग हार :: 85
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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