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________________ शान्तलदेवी ने मादिराज से पूछा, "क्या बात है ?" यह जवाब देना ही चाहते थे कि इतने में सेवक ने आकर कहा, "सिंगिमय्याजी आये हैं।" " उन्हें अन्दर भेज दो।" शान्तलदेवी ने कहा । सिंगमय्या अन्दर आये और अपने लिए नियत आसन पर बैठ गये। सिंगिमय्या ने मादिराज को देखा तो प्रणाम किया, और समझा कि कुछ विशेष बात होगी। मादिराज भी सोचने लगे कि यह क्यों आये। "मैंने सोचा था कि आप लोगों को कल बुलवाकर कुछ बातचीत करूँ। इतने में स्वयं मादिराजजी ने आकर दर्शन करना चाहा। फिर सोचा कि कल तक प्रतीक्षा क्यों करें। इससे मैंने मामाजी के पास खबर भेजी। बताएँ क्या बात है, भण्डारीजी ?" शान्तलदेवी ने पूछा। 11 'आज मेरे पास दो जगहों से पत्र आये हैं। एक प्रधानजी से, दूसरा यादवपुरी से।" कहकर मादिराज चुप हो गये। "कुछ गड़बड़ी तो नहीं है न?" "मेरे पास आनेवाले सभी पत्र ऐसे ही पेचीदगी पैदा करनेवाले होते हैं। सन्निधान और आप दोनों ने विचार कर यह निश्चय किया था कि कुछ करों में वृद्धि की जाए। इससे खजाने में धन तो काफी संग्रह हुआ था लेकिन तलकाडु के युद्ध और इधर मन्दिर निर्माण --- इन दोनों के और गोगर्भ तुलाधार एवं इस समय चल रहे द्रिमुख युद्ध, इन सभी के कारण खजाना खाली होने की सम्भावना है। अब तो गंगराज के पत्र के अनुसार उनके लिए कुछ व्यवस्था करनी ही पड़ेगी। किसी भी कारण से उन्हें मदद देने से इनकार नहीं कर सकते। टकसाल से नये सिक्के ढलवाने होंगे। महासन्निधान यहाँ नहीं हैं। इसलिए परिस्थिति समझाकर, सलाह लेकर आगे के कार्य का निर्णय लेने के उद्देश्य से आया था।" मादिराज बोले । 14 'यादवपुरी से किसका पत्र आया है ?" 'वहाँ जो हाल में गये, उन्हीं कोनेय शंकर दण्डनाथ का । " " 'क्या समाचार है उनका ?" "यह रानीजी के आदेश का परिणाम लगता है। आचार्यजी के लौटने से पहले यदुगिरि में चेलुवनारायण भगवान् के लिए एक मन्दिर निर्माण करने के बारे में है । उन्होंने इसके लिए आवश्यक धन एवं शिल्पियों को तुरन्त भेजने को लिखा है।' 'अभी गंगराजजी का कार्य तुरन्त होना चाहिए। दूसरी बात पर बाद में विचार किया जा सकता है। गंगराजजी को तुरन्त कितने धन की आवश्यकता है ?" 44 "केवल धन ही नहीं, युद्ध की गति धीमी होने के कारण उन्हें रसद की भी आवश्यकता है। विजयोत्सव में राजधानियों के आहार-सामग्री के सभी भण्डार करीब पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार :: 67
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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