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हम तो ऐसा ही समझती हैं।" उसके कहने का ढंग ऐसा था कि वह न इस तरफ है
और न उस तरफ। प्रकारान्तर से शान्तलदेवी के विवाह के पहले से ही पोय्सल राजमहल का इतिहास वह जानती थी। किसी भी प्रसंग में अपने को न फंसाकर उसने इतना समय गुजार दिया था।
बोप्पिदेवी ने भी अपनी एक बात जोड़ दी। बोली, "वैसे ही सोचिए, इसी मुहूर्त में और किस-किस का विवाह कराया जा सकता है?"
"हमारे स्थपतिजी का एक पुत्र है जो विवाह के योग्य है।" शान्तलदेवी ने
कहा।
पद्यलदेवी ने कहा, "ऐसे ही राजमहल से बाहर की बात सोचेंगे तो हजारों लड़के और लड़कियाँ होंगी। उन सबके बारे में सोचना हमारा काम नहीं।"
"जिन्हें हम अपने कार्य योग्य नहीं मानते, वे ही परिस्थितिवश हमारे काम के बन जाते हैं। आप शायद नहीं जानती होंगी, रेविमय्या के साथ हमारा क्या सम्बन्ध है। मेरा सन्निधान के साध्य विवाह हो जाए तो कितना अच्छा हो, यह बात सबसे पहले रेविमय्या के ही मन में आयी थी। ऐसे में सब हमारा ही काम है। स्थपतिजी के बेटे का विवाह भी जल्दी ही करा देना चाहिए। उसके योग्य कन्या के बारे में विचार करें।" शान्तलदेवी ने कहा।
यो भरत-हरियलदेवी के विवाह के सम्बन्ध में जो बात उठी वह इंकण के लिए कन्या देखने की ओर बढ़कर रुक गयी।
इस तरह वेलापुरी का जीवन शान्त रीति से चलने लगा।
उधर गंगराज, जो चालुक्य विक्रमादित्य के बारह सामन्तों की सेना का सामना कर रहे थे, और इधर महाराज जो कंची पर हमला कर रहे थे, दोनों की तरफ से गतिविधियों को बराबर खबर मिलती रही। वेलापुरी और दोरसमुद्र में राष्ट्र के युवक सैनिक शिक्षण पा रहे थे। जब जहाँ से माँग होती, शिक्षित सैनिकों को भेज दिया जाता। वेलापुरी में सिंगिमय्या और दोरसमुद्र में बोपदेव.एवं पुनीसमय्या शिक्षण दे रहे थे। राजनीतिक दृष्टि से एक ओर यह शिक्षण जारी था तो दूसरी ओर सांस्कृतिक दृष्टि से संगीत, साहित्य, शिल्प आदि का शिक्षण भी व्यवस्थित रूप से चल रहा था। चारों और यह खबर फैल गयी थी कि वेलापुरी के विशाल मन्दिर के निर्माता स्थपति एवं बलिपुर के ओंकारेश्वर मन्दिर के निर्माता प्रसिद्ध शिल्पी दासोज शिल्प-शिक्षण दे रहे हैं। इससे राज्य के कोने-कोने से शिक्षार्थी आ-आकर शामिल हुए थे। मन्दिर के लिए सुरक्षित
62 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार