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________________ गाँव जा चुके थे। इस बार जब शान्तलदेवी बेलुगोल गयी थी तब उन्होंने कवि बोकिमय्या और शिल्पी गंगाचार्य से वेलापुरी आने का आग्रह किया था। लेकिन उन्हें प्रतिष्ठामहोत्सव के समय जो गड़बड़ी हुई थी, उसकी खबर लग चुकी थी। इसलिए दूर रहना ही बेहतर समझकर ने बड़ी होशियारी से छुटकारा पा गये थे। वास्तव में शान्तलदेवी की इच्छा थी कि बोकिमय्याजी उनके बच्चों के गुरु बनें 1 बोकिमय्या ने कहला भेजा, "बाहुबली का सान्निध्य छोड़कर आना अभी मुश्किल है।" उन्हें मानसिक-शान्ति वहीं रहने से मिलती हो तो उससे उन्हें क्यों दूर करें, यही सोचकर शान्तलदेवी चुप हो रहीं। दासोज और चावुण को वहीं रख लिया गया। बचे-खुचे छुट-पुट काम उन्होंने ही पूरे किये। जैसा सोचा था, मन्दिर के आवरण में दक्षिण-पश्चिम के कोने में एक छाटा मन्दिर भी तैयार हो गया। सुविधानुसार मुहूर्त निश्चय कर प्रतिष्ठा-समारम्भ के आयोजन की अनुमति महाराज ने दे दी थी। आगमशास्त्रियों की सलाह के अनुसार जकणाचार्य द्वारा निश्चित मुहूर्त में यह उत्सव सम्पन्न हो गया। इसमें डाकरस के बच्चे मरियाने, भरत सभी शामिल थे। भरत ने सहज कुतूहल से पूछा, "एक ही जगह दो चेन्नकेशव...?" स्थपति ने सारा किस्सा सुनाया और कहा, "इस मूर्ति के उदर में मेंढक था। इसलिए एक और मूर्ति को बनवाकर प्रतिष्ठित किया गया है।" "तो यह कप्पे (मेढक) चन्नकेशब हैं !' भरत ने कहा। दाडनायिकाजी ने उसके मुंह पर हाथ रखकर कहा, "बेटा, पट्टमहादेवी के सामने इस तरह बात करेगा? सो भी भगवान् के बारे में?" "गलत तो नहीं न! हमने पण्डूकगर्भ चेन्नकेशव कहा। उसी को इस बच्चे ने कन्नड़ में आसानी से कह दिया 'कप्पे (मण्डूक) चेन्नकेशव'। मुझे भी यही नाम अच्छा लग रहा है। पट्टमहादेवीजी अनुमति दें तो इसे इसी नाम से पुकार सकते हैं।" स्थपति जकणाचार्य ने कहा। "यही नाम इस मूर्ति का होगा, और उसका और इस देश के एक श्रेष्ठ शिल्पी तथा उसके पुत्र का इतिहास युग-युगान्त तक स्थायो हो जाएगा। हम सबने अपनीअपनी इष्ट मूर्ति के नीचे अपने गांव, गली, उपाधियाँ, नाम, घराना आदि जो उकेर दिये हैं, इसलिए कि हमारा नाम अमर बना रहे। परन्तु हम सबके और पट्टमहादेवी के जोर देने पर भी स्थपतिजी ने कहीं भी अपना नाम अंकित नहीं किया। उन्होंने कह दिया कि कृति कृतिकार से प्रधान है । वह नाम कुछ अजीब लगने पर भी हमेशा जनमन में तरोताजा ही बना रहेगा। इसलिए पट्टमहादेवी जी इसके लिए स्वीकृति दें।" दासोज ने कहा। "कोई दोष नहीं। इस भूमि पर सृष्टिकर्म किस तरह हुआ, यह बताने के लिए हमारे पुरखों ने दस अवतारों की कल्पना की है न! प्रथम सजीव प्राणी की उतपत्ति पानी एट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 59
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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