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बिस्तृत दर्शन ही मिल गया। सचमुच मैं भाग्यवान हूँ। सब ठीक हो गया। बड़ी रानियों ने अपने उत्कीरित नाम नहीं देखे ! बीच में कहना चाहता था, मगर रेविमख्या की कथा सुनते-सुनते भूल ही गया।"
"वह अभी तक बने रहे होंगे ? हमने तब पत्थर से खरोंच खरोंचकर बनाये थे । इतने साल बीत चुके; पानी, हवा, धूप के प्रभाव से वह पूर्ण रूप से नष्ट हो गये होंगे !" चामलदेवी ने कहा ।
" शायद अभी भी बच रहे हों !" पुजारी ने कहा ।
"न भी बचे हों तो भी कोई नुकसान नहीं।" पद्मलदेवी ने कहा ।
"हमारे लिए नहीं, दुनिया का नुकसान होगा, आज्ञा हो तो..." पुजारी बोले ।
"
'अच्छा, आपके लिए बहुत समय हो गया।" शान्तलदेवी बोलीं ।
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'कुछ नहीं, खर्राटे लेते हुए सोने की अपेक्षा, आज मैंने जो पाठ सीखा वह है। अच्छा, अब चलता हूँ।" पुजारी जाने लगे ।
महान्
"रेमिय्या ! पुजारीजी को घर पहुँचा आओ।" शान्तलदेवी ने कहा ।
"जो आज्ञा ।" रेविमय्या पुजारीजी के साथ चला गया।
बाकी लोग अपने निवास पहुँचे। हाथ- -मुँह धोकर लेट गये। सबको जल्दी ही नींद आ गयी।
रेविमय्या के लौटते लौटते सब निद्रामग्न हो गये थे।
रेविमय्या को नींद नहीं आयी। अभी उसके मन में वही बातें मँडरा रही थीं जो उसने कही थीं। उसने भगवान् को याद किया, "हे भगवन्, हमारी अम्माजी को अभी सौतों से हानि न पहुँचाओ, मेरी प्रार्थना है। इसे ठुकराओ नहीं भगवन्! एक द्वारपाल की बात अनसुनी करके ठुकराओ मत !" वह वैसे ही चित लेटा लेटा ऊपर की छत को देखता रहा । बहुत देर बाद उसे नींद आयी । महाराज ब्रिट्टिदेव और बम्मलदेवी, दोनों के होते हुए भी युद्ध-शिविर में सारी युद्ध व्यवस्था तलकाडु के युद्ध की ही तरह द्रोहघरट्ट गंगराज के हाथ में रही। गंगराज का पुत्र एवम उदयादित्यरस और बड़े दण्डनायकों में एक मंत्रियरस और छोटे दण्डनायक विट्टियण्णा उनके सहायक रहे ।
मान्न्रण, डाकरस, सिंगिमय्या, बोप्पदेव और पुनीसमय्या - तलकाडु, यादवपुरी और दोरसमुद्र की सुरक्षा के कार्य में लगे रहे। सचिव नागिदेवपणा करीब-करीब यादवपुरी के ही लिए सुरक्षित थे। उनके और आचार्यजी के बीच में एक तरह का मेल था और आचार्यजी ने यदुगिरि को ही अपना मुख्य केन्द्र बना रखा था, इसलिए उन्हें अन्यत्र भेज देने के बारे में बिट्टिदेव ने सोचा तक नहीं था।
थे ।
नारह सामन्त राजा चालुक्य विक्रमादित्य की मदद के लिए सम्मिलित हुए उनमें गोवा और हानुंगल के कदम्ब, सवदति के रट्ट, उचंगी के पाण्ड्य और एम्बरिंगे के सिन्द प्रमुख थे। ऐसा समझना चाहिए कि ब्रिट्टिदेव को पूर्णरूप से दबाकर उनका
पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार 55