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________________ उनके कहे अनुसार ही सभी कार्यक्रम सम्पन्न हुए। पंचमी के दिन सूर्यास्त के बाद, राजपरिवार शारदादेवी के मन्दिर के सामने के मण्डप के नीचे बैठा था। शान्तलदेवी ने चारों ओर दृष्टि दौडायी, और कहा, "सभी लोग हैं न? केवल सन्निधान मात्र नहीं आये। रानी बम्मलदेवी और राजलदेवी तथा सन्निधान आ जाते तो मेरे मन को अत्यन्त सुख शान्ति मिल जाती। हम चाहे किसी धर्म के अनुयायी क्यों न हों, हममें अच्छे मानव बनने की प्रज्ञा उत्पन्न करके, अच्छा बनाना शारदा देवी का काम है। वह तो सभी धर्मों के अनुयायियों के लिए ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है। उसे कोई भेद नहीं। उसका आशय है कि उसी की तरह बिना भेदभाव के हम सभी जीवन-यापन करें। हम भी को उसके इस आशय का पालन करना चाहिए। पता नहीं क्यों, आज एक-एक कर सारी पुरानी बातें मन में उठ रही हैं। मैंने किसी भी तरह के भेदभाव के बिना सभी धर्मों के सभी देवताओं की स्थापना में दत-चिन्न होकर अपना योगदान दिया है। कुछ बातें स्मरण में आ रही हैं। आज ठीक चौदह वर्ष समाप्त हो रहे हैं, वेलापुरी में चेन्नकेशव की स्थापना हुए, है न स्थपति जी ?" . "हाँ, हेमलम्ब संवत्सर के चैत्र सुदी पंचमी के दिन रोहिणी नक्षत्र में।" "आज अभी थोड़ी देर और कृत्तिका नक्षत्र है, रोहिणी आने को है। चौदह वर्ष पूरे हुए। भारतीय संस्कृति श्रीरामचन्द्रजी के चौदह वर्ष के वनवास की समाप्ति के उस दिन को पवित्र दिन मानती है। चौदह वर्ष की समाप्ति का यह दिन मेरे लिए भी पुण्य दिन है। उस दिन वैष्णव धर्म के प्रतीक के रूप में ये चेन्नकेशव भगवान् स्थापित हुए। इसके चार वर्षों के बाद शार्वरी संवत्सर उत्तरायण संक्रान्ति के दिन युगल शिवालयों की स्थापना हुई। इसके दो वर्ष बाद, शोधकृत संवत्सर चैत्र सुदी पड़वा के दिन जिन भक्त होने से मैंने बेलुगोल में शान्तिनाथ की प्रतिष्ठा करवाकर सबकी मानसिक शान्ति के लिए प्रार्थना की। अब आज यहाँ शारदादेवी की स्थापना में सहयोग देकर प्रार्थना कर रही हूँ 'देवि! द्वेष भाव दूर कर परस्पर मैत्री भाव से सहजीवन बिता सकें, ऐसा ज्ञान सबको प्रदान करो।' यों हमारे राज्य के प्रधान तीनों धर्मों के प्रतीक देवताओं की प्रतिष्ठा और तीनों प्रमों की ज्ञान-धारा से प्लावित करनेवाली शारदा की प्रतिष्ठा के इस महान् सभारम्भ में भी हमने भाग लिया है। स्वधर्म का काम समझकर बहुत खुश नहीं हुई। अन्य धर्म का काम मानकर उसके प्रति उदासीन न रही। सब कुछ मानव मात्र के कल्याण के लिा: मानकर इसी विश्वास पर अब तक जीवन-यापन किया मैंने। आज मेरा हृदय उमगित है। उठा है। आज पता नहीं कौन-सी अव्य, क्त भावना मेरे अंगअंग में व्याप्त होकर एक बहुत ही सुखद अनुभूति दे रही है ! ऐसे एक पहान् आनन्द का अनुभव करते वक्त सन्निधान यहाँ होते तो कितना अच्छा होता! यह सौभाग्य मुझे पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 451
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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