SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 436
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जब पूछा गया कि गाँव क्यों छोड़ा तो उसने कहा था, "मुझसे कहा गया'तुमसे जो काम करवाया वह प्रकट होने की सम्भावना है, अतः मैंने जो गलती की उसके लिए तुम दण्डित क्यों हो। इसलिए तुमको काफी धन दिया जाता है, इस गाँव को छोड़कर यहाँ से भाग जाओ' ऐसा कहकर एक तरफ डराया और एक तरह से आश्वासन भी दिया। मैं जीना चाहता था, इसलिए मदुगिरि चला आया । " यह पूछने पर कि गुजारे के लिए क्या करते हो, उससे जवाब मिला, "इर्द-गिर्द के गाँवों में जाकर लोगों के घरों में जेवर बना देता हूँ।... परन्तु यदुगिरि में मैं सुनार का काम नहीं करता। यहाँ मूर्ति बनाने का काम करता हूँ।" " 'क्या तुमको मालूम नहीं कि राजमहलवालों के नाम की मुद्रावाली अँगूठी बनाने का हुक्म सीधे राजमहल से ही मिलता है ?" "मालूम था। रानी के पिता ही रानी की इच्छा के अनुसार बनवा रहे हैं, यहीं कहा गया । इसलिए मैंने स्वीकार कर लिया। अधिक धन भी मिला था।" " तो उसे खरे सोने से क्यों नहीं बनाया ?" "साधारण हो तो भी कोई हर्ज नहीं, यही कहा गया था।" 16 'क्या तुमको यह नहीं लगा कि यह काम गलत है 21 " वे स्वयं घबराकर मुझसे खुद आकर जब तक नहीं बोले, तब तक मुझे ऐसा कुछ नहीं लगा । " 14 'जब तुमसे कहा कि तलकाडु को छोड़ दो तो तुमने वहाँ के अधिकारियों को क्यों नहीं बताया ?" 11 'अधिकारियों को बताने पर तुम्हारा सिर काट देंगे, यों कहकर डराया था और कहा था, कहीं जाकर रहो, यहाँ से भाग जाओ।" "तुमने रानी के पिताजी को कभी कहीं देखा है ?" H 'नहीं, उनकी तरफ से कोई तिलकधारी आया था । " "उसे तुम पहचान सकोगे ?" "हाँ, पहचान लूँगा।" "उन्होंने अपना क्या नाम बताया था ?" "मैंने पूछा नहीं। उन्होंने बताया नहीं।" इतनी तहकीकात के बाद मुद्दला के हत्यारे जो कारावास में थे, उन्हें दिखाया गया। देखने के बाद सुनार ने कहा, "इनमें से कोई मेरे पास नहीं आया था। " पहले से ही एक न एक तरह से तिरुवरंगदास का नाम धर्म-द्वेष और राजनीतिक कार्यकलापों में लिया जाता रहा, तो भी सीधा वहीं सबका कारण है, यह प्रमाणित करने के लिए कोई सबूत नहीं मिला। तीन स्तरों पर न्याय-विचार होने पर भी, और इनमें उसके सम्मिलित होने का प्रत्यक्ष रूप से निश्चय होने पर भी, उसे दण्ड देना सम्भव 440 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy