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________________ 44 'अब तो नागिदेवण्णाजी यहीं हैं। मायण के लौटते ही मन्त्रीजी को यहाँ आने के लिए को" कहकर शान्तलदेवी उठ खड़ी हुईं। दृलदेवी चली गयी। मायण जब लौटा तो वह नागिदेवण्णाजी को साथ बुला लाया। मायण ने जो समाचार संग्रह किया था और चट्टला के द्वारा जो बातें मालूम हुई थीं, उनके आधार पर यही प्रतीत हो रहा था कि रानी की नामांकित अँगूठी शायद उस सुनार से बनवायी गयी होगी। इसलिए शान्तलदेवी ने नागिदेवपणा से कहा कि इस विषय में न्याय विचार का कार्य आगे आप हो चलाइए । "मैं इसकी पूरी तहकीकात करूंगा। यदि हमारा यह अनुमान ठीक निकला तो उसे क़ैद करके राजधानी भेज दूंगा। पट्टमहादेवी के प्रवास से लौटने के बाद न्यायविचार हो जाएगा।" नागिदेवण्णा ने कहा । पट्टमहादेवी स्वीकृति देकर परिवार के साथ तलकाडु की ओर रवाना हुई। जब तक पट्टमहादेवी तलकाडु में रहीं तक मन की दुखाने वाली कोई बात नहीं हुई। स्वयं रानी लक्ष्मीदेवी व्यवस्था कार्य में उत्साह से लगी रही। एक खास बात यह भी कि उसके पिता के दर्शन नहीं हो सके थे। शान्तलदेवी ने पूछा भी " आपके पिताजी कहाँ हैं ? उनके दर्शन ही नहीं हुए! ' 13 " जाने दीजिए। अपनी राह वे ही जानें। पुराने सम्प्रदाय के वैदिक जो ठहरे। राजनीतिक विषयों को वे समझ नहीं सकते। आगा-पीछा तो समझते नहीं और कुछका कुछ कह बैठते हैं। उनसे कह दिया है कि वे किसी राजनीतिक कार्य में दखल न दें। इस तरह उन्हें रोक रखा है, इसलिए वह मुझ पर गुस्सा हैं। " 14 'कौन वाप ऐसा होगा जो बेटी के विरोध को सह ले !" 14 'मुझे क्या द्वेष है? उनका व्यवहार ही कुछ ऐसा है जैसे बन्दर के हाथ में मोती। मेरे नाम की मुद्रा से अंकित अंगूठी के बारे में वित्त सचिव के आकर लौट जाने के बाद, मेरे और मेरे पिताजी के बीच काफी बातें हुई। फलस्वरूप कुछ रोक-थाम कर देनी पड़ी। इससे खिन्न होकर वे आचार्यजी के दर्शन के उद्देश्य से चले गये हैं। 'अच्छा हुआ, जाने दो। आचार्यजी के दर्शन से किसी को भी मानसिक शान्ति ही मिलेगी 1" EN रानी लक्ष्मीदेवी को बातों के पीछे क्या रहस्य हैं, ठीक तरह से समझने के लिए मायण और चहला के द्वारा गुप्तचरों को आदेश देकर शान्तलदेवी किक्केरी होते हुए बेलगोल पहुँचीं। और फिर वहाँ से शिवगंगा पहुँची। पद्मलदेवी और उनकी बहनों के लिए शिवगंगा नयी जगह थी। चारों ओर चार तरह के मुखवाला वह पहाड़, उस पर वृषभ, तीर्थ-स्तम्भ, बीच पहाड़ पर की अन्दर प्रवाहित गंगा, वहाँ का प्रशान्त वातावरणयह सब उन्हें अच्छा लगा। चामलदेवी ने कहा, "मन की शान्ति के लिए यह स्थान बहुत ही उत्तम है। " 438 पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार T
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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