SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 420
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पश्चात् रानी लक्ष्मीदेवी के आचरण के बारे में पद्मलदेवी और चामलदेवी ने पट्टरानी के साथ लम्बी चर्चा की। शान्तलदेवी ने सब सुना, पर कोई प्रतिक्रिया प्रकट नहीं की 1 बात की धारा बदलते हुए कहा, "कोई विवेकशील ऐसी बातें करे तो असन्तोष हो सकता है। लक्ष्मी केवल एक सुन्दर स्त्री हैं। उसकी चित्तवृत्ति उसकी इन्द्रियों के अधीन है। सन्निधान के सिवा कोई उसे ठीक नहीं कर सकता। परन्तु पता नहीं क्यों, वे खुद उससे विमुख हैं। अब तो समय की प्रतीक्षा ही एकमात्र दवा है।" "आप कुछ भी कहें, लक्ष्मी है बहुत जिद्दी औरत । आज नहीं तो कल. उससे किसी-न-किसी तरह की परेशानी तो होनी ही है।" पद्मलदेवो ने कहा। बोप्पिदेवी ने, जो कभी कुछ नहीं बोलती थी, कहा, "ऐसी औरत को मैंने कहीं, कभी नहीं देखा। सियार पर भी विश्वास कर सकते हैं, पर इस औरत पर नहीं। झूठ को सच बनाकर उसने दासियों से जो कहा, उसे आप सुन लेती तो आप समझ जाती। वह एक तरह से इस राजमहल के लिए राजव्रण जैसी बीमारी लग गयी है।" "मैं ब्रह्मा नहीं। छोटी रानी ने कहा न? इसे हृदय से मैं स्वीकार करती हूँ। इतनी ही नहीं, मैं एक कदम और आगे बढ़कर कहती हूँ, जन्म के साथ जो भाग्य लिखा लाये हैं, उसे स्वयं लिखनेवाला ब्रह्मा भी नहीं मिटा सकता। ऐसी हालत में हमें किसी तरह के लालच में नहीं पड़ना चाहिए । हमारे लिए ओ प्राप्य है सो तो मिलेगा ही। जो दुर्लभ है, सो प्राप्त होगा नहीं। इसलिए भविष्य के बारे में चिन्तित होने की हमें जरूरत नहीं। हमें चाहिए कि जो कर्तव्य है सो समझकर उतना भर करते जाएँ, बस मेरी इस बात के लिए हम सब स्वयं साक्षी हैं। मेरा जीवन भी साक्षी है। बड़ी-बड़ी बातें क्यों करें?" "कोई असंगत बातें कहता रहे तो चुप भी कैसे रहा जाए?" नोप्पिदेवी ने कहा। "असंगत बातें?" "उसका बेटा नरसिंह ही भावी पोय्सल महाराज है, यह कहती फिर रही है।" कहते समय बोप्पिदेवी की आँखें अंगारे बन गयी थीं। "भाग्य में न लिखा हो तो वह होगा कैसे? और अगर भाग्य में लिख हो तो उसे कौन मेट सकता है?" 'इस तरह का भाग्यवाद अच्छा नहीं। आपको अपने बच्चों के वंश परम्परागत अधिकारों की तो रक्षा करनी ही होगी?11 पालदेवी ने सवाल किया। "आपको इसका भय ही क्यों है ? राज्य में इस तरह उछलकूद करनेवालों की बातों में आनेवाले लोगों की संख्या कम है। माँ होकर मैं अपने बच्चों के हित की कामना करती हुई भगवान् से सदा प्रार्थना करती रहती हूँ। सुख अधिकार की अपेक्षा 424 :: पट्टमहादेवो शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy