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________________ थी तथा मुहूतं भी निश्चित किया जा चुका था। यह बात सुनने के बाद रानी लक्ष्मीदेवी ने भी कोई विरोध व्यक्त नहीं किया था। पर आखिरा वक्त वह हठ पकड़कर बैठ गयी और कितना ही समझाने पर भी वह जाने को तैयार नहीं हुई। रानी पद्मलदेवी ने भी छोटी रानी के पास जाकर उसे समझाने की कोशिश की। रानी लक्ष्मीदेवी को मालूम ही था कि सनी पालदेवी उसके पास क्यों आयी है। फिर भी उस बेचारो का अपमान क्यों करें, इसी आशय से उसने पद्मलदेवी का स्वागत किया। कहा, "आइए, वैदिए। यात्रा की हड़बड़ी में भी आप आयी हैं, शायद आप वहाँ इधर आये बिना वैसे ही खिसक जाने की बात सोच रही होंगी।" लक्ष्मीदेवी के इस कथन में व्यंग्य था जिसे पालदेवी ने समझ भी लिया था। उसने कहा, "अब हम चाहे यहाँ रहें चाहे वहाँ, दोनों बराबर हैं। हमने अपनी ही गलती के कारण अपना सर्वनाश तो कर लिया, अब वह ऐंठन ही क्यों? "तो आप मानती हैं कि मुझे अपना सर्वनाश खुद नहीं करना चाहिए?" "क्या कोई ऐसी सलाह देगा?" "क्यों नहीं? खाया हुआ खाना अंग न लगे या उबकाई आने लगे, फिर भी वही खाना होगा! मुझे बेलुगोल ले जाने के लिए ही न आप जोर दे रही हैं ?" "पवित्र क्षेत्रों के बारे में ऐसा भी कहीं सोचा जाता है?" "आपके लिए वह पवित्र क्षेत्र हो सकता है। मेरे लिए तो वह क्षेत्र नहीं। उस नंगे भगवान् को, उस निर्लज्ज पुरुष को, देखना भी महापाप है। ऐसी हालत में खाना गले से कैसे उतर सकता है?" "तुम रानी हो, सभी धर्मियों के कार्यों में भाग लोगी तो सभी की आत्मीयता पा सकती हो।" "उन पट्टमहादेवीजी के रहते हम सब किस गिनती में हैं ? उनके लिए तो नौकरानी और दूसरी रानियाँ सब ही तो एक-सी हैं, कोई फर्क नहीं।" "छि:, ऐसी बात तुम्हारे मुँह से नहीं निकलनी चाहिए।" "क्यों नहीं ? श्रीवैष्णवों के प्रति उन पट्टमहादेवी की उदासीन मनोवृत्ति है। श्रीवैष्णों को नीचा दिखाने के खयाल से यह श्रवणबेलुगोल की यात्रा की जा रही है। पट्टमहादेवी ने वेलापुरी जाने को इच्छा क्यों नहीं प्रकट की? मैं दूध-पीती बच्ची नहीं हूँ, अब मुझे यह सब भास हो रहा हैं। लोगों की आँखों में धूल झोंकने के लिए यह सब स्वाँग रचा गया है। यदि उनमें सर्वधर्म-समभाव होता तो महाराज को, जो अब जैन नहीं, जैन क्षेत्र में क्यों ले जार्ती? आप भी जिन भक्त हैं, इसलिए शायद आपको भी मेरी बात जंचेगी नहीं। व्यर्थ बातचीत आपने क्यों करें? मुझे आपके प्रति आदरभाव है और आपसे सहानुभूति भी है।" पट्टपहादत्री शान्तला : भाग चार :: 419
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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