SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 387
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाना केवल षड्यन्त्र रचने के लिए है। मनौती-वनौती सब बहाना है।" "ऐसा होता तो वहीं षड्यन्त्र क्या यहाँ नहीं रचा जा सकता था? उनकी स्वीकृति के बिना उनके विश्रापागार में कोई आ-जा नहीं सकता न?" "फिर भी वह भयग्रस्त हैं। उन्हें इस बात का डर है कि उन पर और उनके पिता पर निगरानी रखी जाती है।" "यदि ऐसा है और वह सच है, तो वे जहाँ कहीं भी जाएँ उनकी जानकारी के बिना उनको निगरानी रखने वाले होंगे ही। आप क्यों चिन्ता करते हैं, अप्माजी?" "तुम्हारी मौं होती और अगर इस तरह के षड्यन्त्र का शिकार बनी तो तुमको भी ऐसा ही लगता।" __"अप्पाजी! मेरी माँ-बहन-बेटी सब पट्टमहादेवीजी हैं। इस राज्य में किसी का साहस नहीं कि उनका बाल भी बाँका कर सके। आप व्यर्थ ही भयभीत न हों।" "तुम कुछ भी कहो, माँ चाहे कुछ भी कहे, मुझे तो इस धर्मदर्शो पर थोड़ा भी विश्वास नहीं । जहाँ उसकी साँस लगती है वहाँ की सारी हवा विषैली हो जाती है।'' "पट्टमहादेवीजी कहती है कि इस तरह का पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहिए, अप्पाजी !" "तुम कुछ भी कहो, मेरे भीतर यह चुभन बराबर बनी रहती है।" "तो अब क्या करने का आदेश है ?" "हम भी वेलापुरी चलें!" "नहीं अप्पाजी, हमारा जाना गलतफहमी का कारण बनेगा। इस न्याय विचार के फलस्वरूप राजमहल से सभी क्षेत्रों के गुप्तचरों को आदेश दिया गया है कि इस सिलसिले में सब पर निगरानी रखी जाए। आप आतंकित न हों।" "ऐसा है तो ठीक है।" "समझ लें, यदि ऐसा न भी हो तो आप यहाँ जाकर क्या करेंगे, अप्पाजी? ऐसे सब कार्यों के लिए कुछ और ही लोग होते हैं। मुझसे भी गुप्तचरी का काम अच्छी तरह नहीं बन पाता।" "यह मैं नहीं मानता। माँ को तुम पर जितना विश्वास है उतना और किसी पर नहीं।" "यदि मैं विश्वासपात्र हूँ तो उसके पीछे गुप्तचरी की कुशलता कारण नहीं, अप्पाजी!" "गुप्तचर का काम करने के लिए व्यक्ति को विश्वसनीय होना चाहिए न?" "अप्पाजी, यह कैसी बात कर रहे हैं ? विश्वासपात्र व्यक्तियों को ही राजमहल अपने यहाँ कार्य पर नियुक्त करता है। परिस्थितिवश कुछ नियुक्तियों के गलत होने को भी सम्भावना रहती है, क्योंकि वे नियुक्तियाँ परम्परागत सम्बन्ध के आधार पर होती हैं। कभी-कभी गलत नियुक्तियाँ प्रेम-वात्सल्य आदि के कारण भी हो जाया करती हैं।" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 39]
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy