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________________ उस बालक का नाम विजय नरसिंह रखा, यह उनके आन्तरिक सन्तोष का द्योतक है, सुप्त सूक्ष्म मनोभाव की अभिव्यक्ति है। इस तरह की भावधारा उनमें प्रवाहित हो रही है। इस विमान का फायदा उसका राम निोट गन फैलान, साम है। यही सोचकर उसके लिए भिन्न मत वालों को छेड़कर काम कर लेना आसान तरीका माना गया, और नये मतान्तरित श्रीवैष्णवों से सम्पर्क स्थापित किया गया। उन नबीन श्रीवैष्णवों के मन में पट्टमहादेवी के बारे में यह भाव पैदा करने का प्रयत्न किया गया कि वह श्रीवैष्णवदेवी हैं। यह उनकी इस योजना का प्रथम सूत्र है। उनका विचार है कि पट्टमहादेवी के बारे में जनता में जो अपार भक्ति और विश्वास है उसे कुछ शिथिल बना देने पर उनके व्यक्तित्व का प्रभाव जनता में कम हो जाएगा। फिर, आगे चलकर इस राज्य में वैष्णवों का प्राबल्य स्वयं हो जाएगा। इस प्रकार धीरे-धीरे सब तरह के राज्याधिकार, संचालन-सत्र अपने ही हाथ में आ जाएंगे। भविष्य में यह पोय्सन सिंहासन श्रीवैष्णव राजा से विभूषित हो, इस महत्त्वाकांक्षा के बीज श्रीवैष्णवों के दिलों में बोकर, यहाँ की जनता को एकता को तोड़ा आए-~~ यह उनकी इस योजना का दूसरा सूत्र है। छोटी रानी और पट्टमहादेवी इन दोनों में परस्पर विद्वेष भाव पैदा कर देना-यह तीसरा सूत्र है। इन तीन सूत्रों के आधार पर इन लोगों ने कार्यक्रम बनाकर, इस तरह की गतिविधियाँ आरम्भ कर दी।" "तुम्हारे हिस्से में कौन-सा कार्य था?" गंगराज ने पूछा। "मैं एक कथावाचक हूँ, सभी तरह के लोगों से मेरा सम्पर्क रहता है। इसलिए सार्वजनिकों के मन में इस तरह की झूठ-मूठ खबरें फैलाकर उनमें तरह-तरह की शंकाएं उत्पन्न करने का प्रयत्न करना, यह मेरे लिए प्रथम आदेश था।" "तुमने उसका कहाँ तक पालन किया?" गंगराज ने पूछा। "एक बार मैंने सन्तेमरल्लि में इस तरह के प्रचार का काम सार्वजनिकों की भीड़ में शुरू किया। उसी दिन रात को मेरे गाँव वालों ने आकर कहा, 'आगे चलकर ऐसा काम करोगे तो तुम्हारा नामोनिशान मिटा देंगे। सुखी राज्य में इस तरह के बुरे कर्म में तुमने हाथ क्यों लगाया?' यों मेरी भर्त्सना करने लगे। जब मैंने उन्हें अपने उद्देश्य के बारे में समझाया तो उन्होंने यह सलाह दी, 'अभी तुमने जो किया यदि आगे भी वैसा करोगे तो तुम द्वेष की भावना ही पैदा करोगे। इससे कोई भलाई तो होगी नहीं। तुमको उनके रहस्य की भी कोई बात मालूम नहीं पड़ेगी इसलिए तुमको जिसने प्रेरित किया, उसकी सारी योजना को समझना हो तो जाकर सीधे उन्हीं को सलाह दो : 'इस तरह के कार्य से विशेष प्रयोजन सिद्ध नहीं होगा। अगर वास्तव में इस कार्रवाई के पोषकों के बारे में पूरी जानकारी हो तो उन्हीं की मदद से चालुक्यों के दामाद जयकेशी से सहायता प्राप्त करा देने की बात उन लोगों के दिमाग में लाओ। इस तरह करोगे तो तुम लोगों का काम आसान हो जाएगा। इसी बीच इस तरह के अपप्रचार के लिए पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 379
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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