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________________ " श्रेयांसि बहु विघ्नानि" यह आर्योक्ति है, पट्टमहादेवीजी इस उक्ति से अपरिचित तो नहीं हैं! "मालूम है। फिर भी पानव की निकृष्टता का जब स्मरण हो आता है तब प्राण निचुद्ध-से जाते हैं।" "सो भी सच है। लेकिन सोना खरा तभी बनता है जब तपता है।" "सब भगवान् की इच्छा है।" शान्तलदेवी ने कहा। प्रसाद आया। उसे स्वीकार कर पट्टमहादेवी ने मौन खड़े बिट्टिदेव तथा अन्य रानियों एवं राज-परिवार की ओर देखा। तभी गर्भगृह के सामने रेशम का परदा खिंच गया। वहाँ से सब विदा हुए। दूसरे दिन विशेष पूजा-अर्चा हुई, विशेष भोज भी दिया गया। राज-परिवार ने उस दिन के सभी कार्य-कलापों में सहर्ष भाग लिया। तीसरे दिन यानी सप्तमी सोमवार के दिन हिरण्यगर्भ और तुलापुरुष समारम्भ सम्पन्न हुए। सोने से बनी गाय के उदर में प्रवेश कर बिट्टिदेव महाराज बाहर आये। बाद में पट्टमहादेवी, और रानियाँ, शान्तलदेवी के बच्चे, सब गोगर्भ से होकर बाहर आये। पश्चात् महाराज विट्टिदेव का तुलाभार सम्पन्न हुआ। इस प्रसंग में पट्टमहादेवी ने अपने शरीर पर जितने जेवर थे उन सभी को उतारकर तुलाभार में डाल दिये। पट्टमहादेवी के ये जेवर तलकाडु से लायी गयी चोलों की स्वर्णराशि से बनवाये गये थे। तुलाभार की समाप्ति पर सुनारों से सोने की गाय तुड़ाकर उसके कुछ अंशों को वहाँ उपस्थित शैव, जैन, श्रीवैष्णव पुरोहितों को दान के रूप में दे दिया गया। बाकी सब युद्ध में प्राणों की आशा छोड़कर विशेष साहस दिखाने वाले योद्धाओं, गुप्तचरों तथा वीरगति-प्राप्त योद्धाओं के परिवारों में बाँट दिया गया। यह कहने की आवश्यकता नहीं कि चट्टला और मायण को भी स्वर्ण मिला। इस विशिष्ट समारम्भ को देखकर लोग अपने जन्म को सार्थक समझने लगे। हर्षीत्साह के साथ अपनी तृप्ति जताकर सभी जन दोपहर के भोजन के लिए निकले। इसी तरह विजयोत्सव भी सम्पन्न हुआ। महाराज बिट्टिदेव ने तलकाडु को विजय पर 'तलकाडुगोंड' विरुद धारण किया। पोयसल सेना ने कतार बाँधकर ध्वजवन्दन किया। लोगों ने इस उत्सव को देखकर अपार सन्तोष व्यक्त किया। इसके बाद महाराज बिट्टिदेव ने घोषणा की, "पोयसल राज्य के प्रजाजनो! आज का दिन हमारे राज्य के इतिहास के महत्त्वपूर्ण दिनों में एक है। बहुत समय पहले जिस गंगवाड़ी को हमने खोया था वह आज हमें प्राप्त हुई। आज हमने यह विरुदावली निमित्त मात्र के लिए धारण की। यह हमने वैयक्तिक रूप से धारण नहीं की है। यह विरुदावली सम्पूर्ण पोय्सल राष्ट्र की है। इस विरुदावली को अपने राज्य के लिए प्राप्त करनेवाले प्रधान गंगराज हैं, जिन्होंने बहुत मेहनत की और प्राणों का मोह छोड़कर 40 :: पट्टमहादं शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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