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________________ नहीं ली!" "यहाँ किसी की सलाह के लिए गुंजायश नहीं थी। तुम इसी तरह दूर रहती और इस तरह की खबर फैलती और हम ऐसे ही राजधानी से दूर रहते, तब भी इसी तरह का आदेश देते।" "सन्निधान क्षमा करें। सन्निधान के साथ विवाह हुए करीब-करीब दो दशाब्दियाँ बीत गयीं। हम भी पट्टमहादेवीजी को सौतें हैं। उन्होंने हमारी हत्या का षड्यन्त्र क्यों नहीं रचा? सन्निधान सचमुच आतंकित हुए, इसलिए इस तरह की जल्दबाजी की और सन्देश भेज दिया। इस सन्देश से पट्टमहादेवीजी को कितनी व्यथा हुई होगी, इसकी कल्पना आप कर सकते हैं प्रभु? अपना सर्वस्व स्वेच्छा से त्याग करने के लिए तैयार रहनेवाली और सभी को एक समान प्रेम से देखनेवाली पट्टमहादेवीजी स्वप्न में भी इस तरह की बात सोच नहीं सकती।" "क्या रानीजी की राय है कि हमें यह बात मालूम नहीं? यह मोच कर ही तो छोटी रानी और राजकुमार को राजधानी में बुलवाकर अपनी देख-रेख में रखने को कहला भेजा।" "षड्यन्त्र की बात सुनने के बाद, उस सम्बन्ध में तहकीकात कर सुरक्षा व्यवस्था करने का आदेश देते तो पर्याप्त था। सन्निधान को मालूम है कि पट्टमहादेवीजी ऐसे मौकों पर अपेक्षित कार्य में तुरन्त लग जाती हैं, वे आदेशों की प्रतीक्षा में बैठने वाली नहीं हैं । ऐसी स्थिति में खुद के संरक्षण में रख लेने के लिए जो आदेश भेजा तो इसका यही अर्थ हुआ कि चोर के हाथ में माल सौंप दें और कहें कि इसकी रक्षा करो!" बिट्टिदेव जी बैठे थे, उठकर चहलकदमी करने लगे। धीरे से घण्टी बजी। तम्बू के द्वार का परदा सरका कुँवर बिट्टियण्णा अन्दर आया। रानी बम्मलदेवी को देखकर ठिठक गया। वहीं खड़ा हो गया। "आओ बिट्टी, बैठो।' कहते हुए बिट्टिदेव भी बैठ गये। बिट्टियण्णा भी बैठ गया। उसके मन में कुछ संकोच का भाव था जो चेहरे पर झलक आया था। करीबकरीब आधी रात का समय था। संकोच करते देख घिट्टिदेव ने कहा, "संकोच का कोई कारण नहीं।" 'महादण्डनायक जी ने बताया था कि सन्निधान अकेले हैं।" "हाँ, जब उनसे बातें हुई तब अकेले ही थे। परन्तु पूर्व सूचना दिये बिना रानीजी स्वयं आ गर्यो । क्यों, मालूम है?" बिट्टिदेव ने रानी की ओर कनखियों से देखा। उनके होठों पर मुस्कराहट थी। "कुमार! सन्निधान का कहना सच है। तुम्हारे साथ इस रात मैं भी किले पर चढ़कर तुम्हारी मदद करूँगी। यही चाहकर सन्निधान से अनुमति माँगने आयी थी। तुम्हारे आने की बात मालूम थी इसीलिए ठहर गयी।" रानी बम्मलदेवी ने कहा। 358 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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