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________________ 'पोय्सल राजकुमारी से पाणिग्रहण करनेवाले दण्डनायक को वह स्थान न देकर, बिट्टियण्णा को वह स्थान दें तो राजकुमारी क्या समझेंगी? दण्डनायक भरत ज्या सोचेगा?" "योग्यता का सवाल जब उठता है तब सगे-सम्बन्धी का भाव नहीं उठता। मेरे पिताजी ने भी इसी तरह के प्रेम के वशीभूत होकर सन्निधान के दादा और पिताजी को वेदना पहुँचायी थी। लेकिन युवराज ऐयंग प्रभु, महामात श्री एचलदेवीजी, दोनों साक्षात् देव-देवी थे, क्षमा की मूर्ति ही थे। ऐसा न होता तो मुझे या मेरे बड़े भाई को अथवा हमारी सन्तान को राजमहल के प्रति अपना विश्वास और भक्ति प्रमाणित करने का यह मौका ही नहीं मिलता। हम रमही गरीन हो : "दण्डनायकजी, इस बात को न भूलें कि आपकी पुत्रवधू पट्टमहादेवीजी की पुत्री हैं।" "लग रहा है, सन्निधान मेरी परीक्षा ले रहे हैं। पट्टमहादेवीजी की गोद में ही बिट्टियण्णा ने पहली साँस ली। वास्तव में वे ही उसकी माँ हैं। बिट्टियपण्या पर उनका वात्सल्य लोक-विख्यात है। वे कभी मेरी सलाह को गलत नहीं कहेंगी।" "इतना धीरज आपमें हो तो इस बात के बारे में उनसे विचार करके निर्णय करेंगे। दण्डनायकजी, आपकी इस सलाह से हमें आप पर विशेष गर्व हो रहा है। स्वयं अपनी गलती को समझकर अपने को सुधार लेना मनुष्य के लिए अच्छी बात है। परन्तु दूसरों की गलती से जो अन्याय हो उसे देखकर, उससे अपना व्यवहार ठीक रूपित कर लें, यह और भी श्रेष्ठ रीति है। अच्छा छोड़िए इस बात को, यह बताइए कि इस समय आक्रमण की स्थिति क्या है?" "अभी निश्चित रूप से बताना कठिन है। फिलहाल हम जान के बदले जान लेंगे। हमारा हमला अभी पूर्व व उत्तर की तरफ से है, मगर उस तरफ किले को तोड़ने में असमर्थ हो रहे हैं। अभी इन दस दिनों के हमले से शत्रुओं का ध्यान पूर्व और उत्तर की ओर ही केन्द्रित है। इसलिए कल सूर्योदय होते ही दक्षिण के द्वार पर हमला कर देने की सलाह बिट्टियण्णा दे रहा है। अब तक हम किले की दीवार तक नहीं छू पायें। शत्रुओं के तीर-कमानवाले सैनिक बहुत चुस्ती से काम कर रहे हैं । इसलिए आज की रात दक्षिण-द्वार को भेदने की गुप्तरीति से तैयारी करने का उसका इरादा है।" "द्वार कैसे तोड़ेंगे?" "वैसे द्वार को बाहर से तोड़ने की बात कर रहा है पर उसका उद्देश्य कुछ और है। बिट्टियण्णा का कहना है कि आज ही रात को सैनिकों की एक टुकड़ी किले पर चढ़कर अन्दर उतरेगी और सूर्योदय के पहले ही द्वार-रक्षकों को दबोच लेगी। फिर भीतर से द्वार खुल जाने से हमारी सेना को भीतर घुसने का मौका मिल जाएगा।" "बिना कारण इतने लोगों की जान एक साथ शत्रुओं के हाथ हम खुद दे दें, यही होगा न? हमें क्या पालूम, अन्दर द्वार-रक्षा के लिए उन्होंने क्या-क्या इन्तजाम पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 355
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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